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________________ १२४ तब होता है ध्यान का जन्म का ध्यान नहीं करता, रात-दिन सोते-उठते प्रिय-अप्रिय विचारों में उलझा रहता है, उसे बुरे विचार नहीं आएंगे तो और क्या आएगा? यह निश्चित मानें जिस व्यक्ति में निरन्तर पदार्थ की लालसा, सब कुछ पा लेने की भावना, ऐशो-आराम की भावना, नशे की वृत्ति है, इस प्रकार का जीवन और जीवन की चर्या होती है, वहां नकारात्मक विचारों का आना बहुत जरूरी है। बुराई और पदार्थपरकता हमने ऐसे हजारों-हजारों व्यक्तियों को देखा है जिनके पास सब कुछ है पर उनके जीवन में सुख नहीं है, शांति नहीं है। वे बिल्कुल बुरे विचारों से दबे हुए हैं। कोई आत्महत्या की बात सोचता है, कोई घर से भाग जाने की बात सोचता है और कोई परहत्या की बात सोचता है। कोई किसी को लेकर भाग रहा है और कोई किसी के पीछे पड़ रहा है। यह सारा क्यों हो रहा है? पदार्थ-परक दृष्टिकोण बनेगा तो बुरा विचार अवश्य आएगा। पदार्थ-परकता और बुराई में गहरा सम्बन्ध है। जो व्यक्ति इन बुरे विचारों से अपने आपको बचाना चाहता है, उसके लिए निर्जरा करना बहुत आवश्यक है। पारिवारिक जीवन में जो बहुत सारे झगड़े चलते हैं, उनका कारण यही पदार्थ-परकता बनती है। उसने वह चीज उसे दे दी और मुझे नहीं दी। उसने मुझे यह दे दिया और यह छीन लिया। अपने लड़के को नहीं दिया, दूसरों के लड़कों को मिल गया। ये सारी पदार्थ से जुड़ी बातें सुखद पारिवारिक जीवन को दु:खमय बना देती है। __पिता और पुत्र भोजन कर रहे थे। इतने में जोरदार आवाज हई। पिता ने कहा-कोई बर्तन फूटा है। पुत्र बोला- 'हां, कोई कांच का बर्तन फूटा है और मेरी मां के हाथ से फूटा है।' यह सुनते ही पिता को आवेश आ गया-तेरी क्या आदत पड़ गई है। हमेशा अपनी मां की बुराई देखता है। यह नहीं कहता कि मेरी पत्नी के हाथ से फूटा है।' 'पिताजी! मैं ठीक कह रहा हूं।' 'तुम्हे क्या पता चला? हम तो यहां बैठे हैं।' 'मुझे पक्का पता है।' 'जाओ, पहले पता करके आओ।' लड़का भीतर गया और सारी स्थिति को जानकर बाहर आया, बोला--'पिताजी! मैंने सारी स्थिति जान ली। मां कांच का बर्तन ला रही थी। वह मां के हाथ से गिरा और गिरते ही फूट गया। मां स्वयं यह बता रही थी।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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