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________________ ७९० ... जम्बूद्धोपप्रज्ञप्तिसूत्रे पणिवइअवच्छला खलु उत्तमपुरिसा णत्थि मे भरहस्स रण्णोअंतिया ओ भयमिति कटु, एवं वदित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया।तएणं ते आनाडचिलाया मेहमुहहिं णागकुमारहिं देवेहि एवं वुत्ता समाणा उठाए उट्ठति, उद्वित्ता पहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगणिअच्छा अग्गाई वराई रयणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धाविति वद्धावित्ता अग्गाइं वराइं स्यणाई उवणेति, उवणित्ता एवं वयासी-'वसुहर गुणहर जयहर हिरिसिरि धिकित्तिधारकरिंद। लक्खणसहस्सधारक रायमिदं णेचिरं धारे ॥१॥ हेयवइ गयवइ णवइ णवणिहि बइ भरहवास पढमवई । वत्तीस जणवयसहस्सरायसामी चिरंजीव ॥२॥ पढमणरीसर ईसर हिअ ईसर महिलिआ सहस्साणं । देवसय साहसीसर चोदस रयणी सर जसंसी ॥३॥ सागर गिरि मेराग उत्तर वाईण मभिजिअं तुमए । ता अम्हे देवाणुप्पियस्स विसए परिवसामो॥४॥ अहोणं देवाणु. प्पियाणं इड्डो जुई जसेबले वोरिए पुरिसकारपरक्कमे दिव्वा देवजुई दिवे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तं दिट्ठाणं देवाणुप्पिया णं इद्धो एवं चेव जाव अभिसमेण्णागए. तं खामेम णं देवाणुप्पिया खमंतु णं देवाणुप्पिया खंतुमरहतुणं दवाणुप्पिया! णोइ भुज्जोभुज्जो एवं करणयाए त्तिकटु पंजलिउडा पायवडिआ भरहं गयं सरंग उजवेति । तएणं से भरहे राया तेसिं आवाडचिलायोणं अग्गोइं वराई रयणाई पडिच्छंति पडिच्छित्ता ते आवाडचिलाए एवं वयासी गच्छहणं भो तुम्भे ममं बाहुच्छाया परिगहिया णिभया णिरुबिग्गा सुहं सुहेणं परिखसह, णस्थि मे कत्तो वि भय पत्थि तिकटु सक्कारेइ सम्माणेइ सक्कारेत्ता सम्मा णेत्ता पडिवितज्जेइ । तएणं से भरहे राया सुसेणं सेगावई सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी गच्छाहिणं भो देवाणुप्पिया ! दोच्चंपि सिंधुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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