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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे मण्डपे सुखासनवरगतः अष्टमभक्तं परिपारयति, 'परियादिएत्ता' परिपार्य 'जाव सीहासनारगतः श्रेष्ठसिंहासनोपविष्टः 'पुरत्थाभिमुहे णिसोयइ' पौरस्त्याभिमुखः निषीदति उपविशति 'णिसीएत्ता' निषध उपविश्य 'अट्ठारत सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ' अष्टादश श्रेणिप्रश्रेणी: शब्दयति आवयति 'सदावित्ता' शब्दयित्वा आहूय 'जाव अट्टाहियाए महामहिमाए तमाणत्तिय पच्चप्पिणंति' यावत्ताः श्रेणि प्रश्रेणयोऽष्टाहिकाया महामहिमायाः ताम् आज्ञप्तिका प्रत्यर्पयन्ति समर्पयन्ति यथाऽष्टाहिकोत्सवः कृत इति ॥सू०११॥ अथ वैताब्यमुरसाधनमाह- "तएणं से" इत्यादि । मूलम्- तएण से दिव्वे चक्करयणे सिंधूए देवीए अट्ठाहीयाए महामहीमाए णिवत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ तहेव जाव उत्तरपुरस्थिमं दिसिं वेयद्धपब्बयाभिमुहे पयाए यावि होत्या. तए णं भरहे राया जाव जेणेव वेयद्धपब्बए जेणेव वेयद्धस्स पब्बयस्स दाहिणिल्ले णितबे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वेयद्धस्स पब्बयस्स दाहिणिल्ले णितंबे दुवालसजोयणायामं णवजोयणवित्थिन्नं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ करित्ता जाव वेयद्धगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ पपिण्हित्ता पोसहसालाए जाव अट्ठमभत्तिए वेयद्धगिरिकुमारं देवं मणसि करेमाणे चिट्ठइतएणं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तसि गये और बैठकर उन्होंने भष्टमभक्त की पारणा की ( परियादियत्ता जाव सीहासनवरगए पुरस्थाभिमुहे णिसीयइ ) अष्टम भक्तकी पारणा करके सिंहासन पर बैठ गये ( णिसीएत्ता अष्ट्रारस सेणिप्पसेणीओ सदावेइ ) सिंहासन पर बैठकर फिर उन्होंने १८ श्रेणी प्रश्रेणिजनों को बुलाया (सदावित्ता) बुलाकरके ( जाव अट्ठाहियाए महामहिमाए तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति) यावत् उन श्रेणी प्रश्रेणीजनों ने आठ दिन का महामहोत्सव किया । और इसकी खवर "हमलोगोंने आठ दिन का महामहोत्सव कर लियाई । ऐसो खवर पीछे राजा के पास भेजदी ॥सू०११॥ આવીને તે ભેજન મંડપમાં સુખાસન પૂર્વક બેસી ગયા અને બેસીને તેમને અષ્ટમ ભક્તની ५.२ . (परियादियत्ता जाव सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे णिसीयइ) अष्टम सतनी પારણા કરીને પછી તે યાવત પૂર્વ દિશા તરફ મુખ કરીને સિંહાસન ઉપર બેસી ગયા. (णिसीइत्ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सहावेड) सिंडासन ७५२ मेसीन पछी तेभर १८ र प्रविनासाव्या. (सहावित्ता) लावीन (जाव अट्ठाहियाए महामहिमाए तमाणत्तियं पञ्चदिपणंति) यावत् ते ऋण-प्रबिनाये हसन महाभत्सव ध्या. अने महाમહોત્સવ સમ્પન્ન થઈ જવાની સૂચના રાજાને આપી. ૧૧ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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