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________________ पडलहत्थगयाओ) चन्नेरी पुष्पपटलहस्तगताः, तत्र च जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तसूत्रे पुष्पपटलं चङ्गेरीपुष्पपटलम् चरी कुसुमसमूहः तत् हस्तगतं यासां तास्तथा (भिंगार आदंसथालपाती सुपरट्टगवायकरगरयणकरंड पुप्फ चंगेरी मल्लवण्णचुण्णगंध हत्थगयाओ ) भृङ्गारादर्श स्थालपात्रीसुप्र तिष्ठकवातकर करत्नकरण्डपुष्प चङ्गरीमालयवर्णचूर्णगन्धहस्तगताः, तत्र भृङ्गारकः ( झारी) ति भाषा प्रसिद्धः आदर्श दर्पण: स्थाल: महतीस्थाली, पात्री लघुस्थाली सुप्रतिष्ठा सुस्थापनं भवति यस्मिन् स सुप्रतिष्ठकः पूर्णघटाद्याधारमात्रविशेषः वातकरकः घटविशेषः रत्नकरण्डः (करंडिया) इति भाषाप्रसिद्धो रत्नाधारपात्रविशेतः, अतः परं नवरं पुष्प चङ्गतः आरभ्य माल्यादिपद विशेषितास्तत्तच्वय्य ज्ञातव्या स्तथा च पुष्पचङ्गेरीमाल्यचङ्गेरी, वर्णचङ्गेरी, चूर्णचङ्गेरी, गन्धचङ्गेरी एता हस्तगता यासां तास्तथा ( वत्थ आभरणको महत्ययचंगेरी पुप्फपडलहत्थगयाओ) वस्त्राभरणलोमहस्तक चङ्गेरी पुष्पपटलह. स्तगताः तत्र लोमहस्तक बद्धमयूरपिच्छसमूहः पुष्पपटल पुष्पसमूहः अतिरिक्तानि प्रसिथे, कितनीक दासियो के हाथ में चंगेरी में पुष्पो का समूह था. (भिंगार आदंस थाल पाति सुपइद्रुगवाय करगरयणकरंड पुप्फचंगेरी मल्उवण्णचुण्ण गंधहत्थग़याओ ) कितनीक दासियों के हाथ में भृङ्गारकथा-झारी थी. कितनीक दासियों के हाथ में आदर्श-दर्पण था. कितनी दासियों के हाथ में स्थाल - बडेर थाल थे कितनीक दासियों के हाथ में छोटोर थालियां थी, कितनीक दासियों के हाथ में सुप्रतिष्ठ पूर्ण घटो आदि के आधार भूत पात्रविशेष थे, कितनीक दासियों के हाथ में वातकरक-घटविशेष-थे, कितनीक दालियों के हाथ में रान करण्ड-रत्नों को रखने के पात्र विशेष थे इसी तरह से किन्हीं२ दासियो के हाथ में पुष्प चंगेरी, किन्हीं२ दासियों के हाथ में वर्ण चङ्गेरी, किन्हीं२ के हाथ में चूर्ण चङ्गेरी और किन्हीं के हाथ में गन्ध चङ्गेरी थी (वत्थ आभरणोमहत्थय चंगेरी पुप्फ पडल हत्थगयाओ जाव लोमहत्थ गया ओ ) किन्हीं २ दा. मियो के हाथ में वस्त्र थे, किन्हीं२ दासियो के हाथ में आभरण थे किन्हीं२ द सियो के हाथ पुष्प तां. ( भिंगार आदस थाल पाति सुपरट्टगवायकरगरगणकरंड नुप्फ बंगेरी मल्लवण्णघुण्णगंध हत्थगयाओ ) डेटसी हासी मोना हाथ मां, श्रृंगार। हता, डेंटली દાસીએના હુ થેામાં-આદશ ---ણા હતાં. કેટલીક દાસીઓના હાથેામાં સ્થાલે-માટા-માટા થાળે! હતા. કેટલીક દાસીએના હાથેામાં નાની-નાની થાળીએ હતી. કેટલીક દાસીઓના હાથેામાં સુપ્રતિષ્ઠકા-પૂર્ણ ઘટ-વગેરેના આધાર ભૂતપાત્ર વિશેષ હતા. કેટલીક દાસીએના હાથે માં વાતકરક-ઘટ વિશેષ-હતા. કેટલીક દાસીઓના હાથેામાં રત્ન કરડ-રત્નેને મૂકવા મટેના પાત્ર વિશેષેા હતાં. આ પ્રમાણે જ કેટલીક દાસીએના હાથેામાં પુષ્પની નાની છાબડી ખેા, કેટલીક દ!સીએના હાથેામાં રંગભરેલી નાની છાખડીઓ, કેટલીક દાસીઓના હાથેામાં ચૂત્રુ ભરેલી નાની છાબડીએ અને કેટલીક દાસીએના હાથેામાં સુગન્ધ-પદાર્થોં लरेसी नानी छाणडीओ हुती. ( वत्थ आभरण लोमहत्थयचंगेरी पुप्फपडलहत्थगयाओ जाय लोमहत्थगयाओ) उसी हासी खोना हाथां वस्त्र हुता डेटसी हासी खाना हाम આભરણા હતાં, કેટલીક દાસીઓના હાથેામાં લેામહસ્તકે હત', એટલે કે મયૂરના પિચ્છ ५५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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