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________________ प्रकाशिका टीका तृ. वक्षस्कारः सू० ३ भरतराशदिग्विजयादिनिरूपणम् ५३९ अभिरामाम् । अतएव' सुगंधवरगंधियं' सुगन्धवरगन्धिताम् 'गंधवट्टिभूयं' गन्धवर्तिभूताम् सुगन्धवर्तिकारूपाम् ईदृशविशेषणविशिष्टाम् 'करेह कारवेह' कुरुत स्वयम् कारयत परैः 'करेत्ता, कारवेत्ता' य कृत्वा कारयित्वा य 'एय माणत्तियं पच्चप्पिणह' एतामाज्ञप्तिकांप प्रत्यर्पयत एतामाज्ञप्तिम्-आज्ञां प्रत्यर्पयत समऽर्पयत ततस्ते किं कुर्वन्तीत्याह-'तए णं' इत्यादि । 'तए णं ते कोडुंबियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा' ततः खलु ते कौटुम्बिकपुरुषाः भरतेन राज्ञा एवमुक्काः सन्तः ततो भरताज्ञानन्तरं ते कौटुम्बिकपुरुषाः राजसेवकाः भरतेन राज्ञा एवमुक्तप्रकारेणोक्ताः सन्तः 'हट० करयल जाव' इष्टाः करतल यावत तत्र इष्टाः करतल यावत परिगृहीतं दशनखं शिरसावत्त मस्तके अजलिंकृत्वा ‘एवं सामित्ति ! आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति' एवं स्वामिन् ! आज्ञाया विनयेन वचनं प्रतिशृण्वन्ति एवं स्वामिनः यथाऽऽयुष्मन्तः आदिशन्ति तथेति कृत्वा आज्ञायाः विनयेन वचनं प्रतिशृण्वन्ति स्वीकुर्वन्तोति ततस्ते किं कुर्वन्तीत्याह—'पडिसु. णित्ता भरहस्स अंतियाो पडिणिक्खमंति' प्रतिश्रुत्य स्वीकृत्य भरतस्य राज्ञोऽन्तिकात् विशेषों को – अग्नि में जलाओ एवं अतिशयरूप से इनके निकले हुए धूम की गन्ध से उसे सुगंधो का भंडार बनाओ "सुगंधवरगंधिअं गंधवटिभूअं करेह कारवेह" यहीबात इन पदों द्वारा विशेषरूप से पुष्ट की गइ है 'करेह' क्रियापद का अर्थ है आप सब इस बात को स्वयं करो तथा "कारवेह" दूसरो' से भी कराओ "करेत्ता कारवेत्ता य एयमाणत्तिअं पञ्चपिणह" इस प्रकार आदेश देने के बाद उस चक्रवर्ती ने उनसे साथ२ मैं ऐसा कहा कि "हमें तुम लॉग" यह सब कहागया काम हमने पूरा कर लिया" इसबात की ख्वर देना (तएणं तं कोडुंबिय पुरिसा भरहेणं रण्णा एवंवुत्ता समाणा हट्ट करयलजाव एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति" इस प्रकार से अपने अधिपति भरत राजा द्वारा आज्ञा पत हुए वे कौटुम्बिक पुरुष वहुत ही अधिक प्रमुदित हुए उन्होंने दोनो हाथों को पूर्वोक्तरूप से जोड़ कर के एवं उनकीकृत अञ्जलिको मस्तक पर दाहिनी ओर से बांई ओर को घुमाकर કરે કે જે સુરભિત હય, સુગંધિત હોય તેમજ સરસ હોય એટલે કે શુષ્ક ન હોય. નગરીને અતીવ સુગંધિત બનાવવા માટે કાલાગુરુ, શ્રેષ્ઠ કુષ્ક અને તુરુક-લેબાન એ સર્વધૂને-સુગંધિત દ્રવ્ય વિશેષોને-અગ્નિમાં પધરાઓ અને અતિશય રૂપમાં એમનાથી नाता भनी थी तन समधने २ अनावी हो. "सगंधवरगंधिगंधवटिभ करेह कारवेह' मे पात से पोपडे विशेष ३५मा पुष्ट ४२वाम मावी छे. "करेह" या पहने। अर्थ छ-तभे सो भनीने से आम ४२ तथा "कारवेह' भीत। पासेथी ५ शव।. 'करेत्ता कारवेत्ता य एयमाणत्ति पच्चप्पिणइ' मा प्रमाणे माहेश मापात ચક્રવતીએ તેમને આમ કહ્યું કે કામ પૂરું થાય એટલે તમે સવે અમને આ રીતે ખબર माया तमे रे म अमन सो पर्यु a मम सारी शa y३ ४यु छे. (तपणं तं कोई बियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं बुत्ता समाणा हट्ट करयल जाव एवं सामित्ति आणाए बयणं पडिसुणंति) मा प्रमाणे पाताना मधिपति १२ २00वारा माज्ञापित येतौटु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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