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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिस्त्रे पुक्खरिणी दीहिया मुनिवेसिय रम्मजालहरयाओ' वापीपुष्करिणी दीर्घिका मुनिवेशितरम्यजालगृहकाः, तत्र-वाप्य:-चतुष्कोणाः, पुष्करिण्यः-वाप्य एव वृत्ताकाराः, दी. धिका:-ऋजुसारिण्यः, तासु मुनिवेशितानि-सृष्ठु स्थापितानि रम्याणि-रमणीयानि जालगृहकाणि -सच्छिद्रगवाक्षा यासु ताः, 'पिडिमणोहारिमं' पिण्डमनिहारिमां-पिण्डिमां मिलितां सतों निरिमां शुभपुद्गलसमूहरूपेण दूरदेशगामिनोम् 'सुगन्धि' सुगन्धिशोभनगन्धवतीम्, तथा 'मुह सुरभिमणहरं च' शुभसुरभिमनोहराम् -शुभः-प्रशस्तः यः सुरभिः शोभनो गन्धस्तेन मनोहारिणोम्, 'महया गंधद्धाणिं' महागन्धघ्राणिं महती चासौ गन्धघ्राणिः-गन्ध एव प्राणिः तृप्तिः तद्धतुत्वात् गन्धघ्राणि स्तां तथा महागन्धतृप्तिम् 'मुयंताओ' मुश्चन्त्यः-प्रसारयन्त्यः तथा 'सयोउप पुप्फकल समिद्धाओ' सार्वर्तु - कपुष्पफलसमृद्धाः-सकलऋतूत्पन्नपुष्पफलैः समृद्धाः-सम्पन्नाः 'सुरम्माओ' सुरम्या:-अति रमणीया, 'पासाइयाओ' प्रासादीयाः-दर्शकानां हृदयप्रसादकराः, 'दरिसणिज्जाओ' दर्शनीयाः, द्रष्टुं योग्या, 'अभिरूवाओ' अभिरूपाः-सर्वथा दर्शकज नमनोनयनहारिण्यः 'पडिरूवाओ' प्रतिरूपाः-असाधारण रूप युक्ताश्च सन्ति इति ॥सू०२२॥ फल समिद्धाओ सुरम्माओ पासाईयाओ, दरिसणि जाओ, अभिरूवाओ पडिरूवाओ' ये वनराजियां देखने वालों को ऐसी प्रतीत होता है कि मानो ये विचित्र प्रकार की अच्छी बजाएँ सी ही हैं । इन में जो वापिकाएँ हैं चौकोर बावड़िवा है, गोल आकार वालो पुष्करिणियां हैं तथा दीर्घिकाएँ है इन सब के ऊपर सुन्दर सुन्दर जालगृह स्थापित हैं, छिद्रों सहित गवाक्षों का नाम जालगृह है, ये वनराजियां ऐसी गन्ध घ्राणि को-जिससे मनुष्यों को तृप्ति हो जावे ऐसी सुगन्धि को-लोड ती रहतो हैं यह गन्ध घ्राणि उन वनराजियों में से अल्प मात्रा के रूप में निकलती है किन्तु पिण्डित होकर के निकलती है और निकलकर वह बहत दूर दूर तक चली जाती है इसकी जो वास होती है वह मनोहर होती है, इन वनराजियों में सर्वऋतुओं के पुष्प एवं फूल लगे रहते हैं अतः ये उनसे सदा समृद्ध रहती हैं, ये सब वनराजियां अति रमणीय हैं, दर्शकजनों के हृदयों को प्रसन्न करनेवाली हैं, दर्शनीय हैं देखने योग्य हैं, देखने वालों के मन और नयनों को हरण करने वाली हैं, और असाधारणरूप से युक्त हैं ।। २२ ॥ सणिज्जाओ अभिरुवाओ षडिरूवाओ" से वन बनाशमान मेवा लागेल એએ વિચિત્ર પ્રકારની સારી વજાએજ હેય'એમાં જે વાપિકા એ છે–ચાર ખૂણા વાળી વાવે છે. ગોળ આકારવાળી પુષ્કરિણીઓ છે. તેમજ દીઘિકાઓ છે એ સર્વની ઉપર સુન્દર સુન્દર જાલ ગૃહે સ્થાતિ છે. છિદ્રોવાળા ગવાક્ષો જાગૃિહ કહેવાય છે. એ વન રાજિઓ મનુષ્યને તૃપ્તિ થાય તેવી સુગંધિને–ગઘધ્રાણિને ચોમેર પ્રસત કરતી રહે છે. એ ધ્રાણિ તે વનરાજિઓ માંથી અલ૫માત્રામાં પિડિત થઈને નીકળે છે અને નીકળી ને તે બહુજ દૂર સુધી જતી રહે છે. એમની જે વાસ હોય છે તે મનોર હોય છે. એ વનરાજિઓમાં સર્વ ઋતુઓના પુષ્પ તેમજ ફળો સર્વદા રહે છે. એથી એ તેમનાથી સદા સમૃદ્ધ રહે છે. એ સર્વ વનરાજિએ અતિ રમણીય છે. દર્શકોના હૃદયને પ્રસન્ન કરનારી છે. દશનીયા છે, દશ કે ના મન અને નયનાને આકર્ષાનારી છે અને અસાધારણ રૂપથી યુક્ત છે. ૨રા Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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