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________________ प्रकाशिका टीका द्वि० वक्षस्कार सू० २१ कालस्वरूपम् इत्यादि । 'सत्थेग सुतिखेग वि' सुतीक्ष्णेनापि शस्त्रेण खङ्गादिना केऽपि जनाः यं 'छेत्तुं' छेत्तुं-द्विधाकर्तुम् 'भेत्तु, भेत्तुं' विदारयितुं वा 'किर' किल-निश्चयेन ण सका' न शक्ताः-समर्था न भवन्ति, 'तं सिद्धा'तं-सिद्धाः सिद्धाइव सिद्धा उत्पन्न केवलज्ञानधरा जिनाः, न तु सिद्धिं गताः, तेषां वचनयोगासम्भवात् 'परमाणु' परमाणुव्यावहारिक परमाणु ‘पमाणाणं' प्रमाणानाम्-अग्रे वक्ष्यमाणानामुच्छ्लक्ष्ण श्लक्ष्णिकादिरूपाणाम् आदि' आदि-प्रथमम् 'वयंति' वदन्ति-कथयन्ति इति । भगवदुक्तत्वेनात्र परमाणुलक्षणे आगमप्रमाणं सुव्यक्तम्, अनुमानप्रमाणमप्यत्रैव विज्ञेयं तथाहि-अनुमानप्रयोगः अणुपरिमाणं कचिद् विश्रान्तं तरतमशब्दवाच्यत्वात् महत्परिमाणवत्, यत्र विश्रान्तं स परमाणुरिति । "सत्थेण सुतिखेण वि छेत्तु भेत्तुं च जं किर ण सका। तं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं ।। १ ।। -- कोई भी मनुष्य सुतीक्ष्ण शस्त्र से भी इस व्यावहारिक परमाणु को खंडित करने के लिये या उसे विदारित करने के लिये समर्थ नहीं है ऐमा उत्पन्न केवलज्ञान वाले भगवन्तों ने कहा है यहां सिद्ध पद से सिद्ध अवस्था प्राप्त जन गृहीत नहीं हुए हैं, क्यों कि उनके वचनयोग नहीं होता है, अतः केवलज्ञान के आधारभूत केवलो ही गृहीत हुए हैं । यह ब्यावहारिक परमाणु सकल प्रमाणों का कहे जाने वाले उच्चलक्षण आदि प्रमाणों का आदि कारण है, इस प्रकार का यह कथन भगवक्त होने से व्यावहारिक परमाणु के अस्तित्व में आगम प्रमाणरूप है। अर्थात् व्यावहारिक पमाणु की सत्ता का ज्ञापक आगम प्रमाण है। अनुमान प्रमाण इसकी सत्ता का ज्ञापक इस प्रकार से है "अणुपरिमाणं कचिद विश्रान्तम् तरतमशब्दवाच्यत्वात् महत् परिमाणवत्" महत्परिमाण की तरह अणु परिमाण तरतमशब्द वाच्य होने से कहीं पर विश्रान्त है अर्थात् जिस प्रकार तरतमशब्द होने के कारण महत् परिमाण आकाश में विश्रान्त है, इसी प्रकार यह अणुपरिमाण भी तरतमगाथा २५ष्ट अरे छ:.. सत्थेण सुतिक्खेण वि छेत्तुं मेतुच जे किर ण सक्का । तं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाण ॥१॥ કેઈ પણ મનુષ્ય સુતીક્ષણ શત્રુથી પણ આ વ્યાવહારિક પરમાણુ ને ખંડિત કરી શકતો નથી, વિદીર્ણ કરી શકતા નથી, એવું ઉત્પન્ન કેવળ જ્ઞાની ભગવન્તએ કહ્યું છે. અહીં સિદ્ધપદથી સિંદ્ધ અવસ્થા પ્રાપ્ત જન ચંડીત થયેલા નથી કેમકે તેમને વચન એગ થતું નથી. એથી કેવળજ્ઞાનના આધારભૂત કેવળી જ અહીં ગૃહીત થયેલા છે. આ વ્યાવ હારિક પરમાણુ સકલ પ્રમાણેને કહેનાર ઉચ્છલણ આદિ પ્રમાણેનું આદિ કારણ છે, આ જાતનું આ કથન ભગવદુકૃત લેવાથી વ્યાવહારિક પરમાણુના અસ્તિત્વમાં આગમ પ્રમાણ રૂપ છે. એટલે કે વ્યાવહારિક પરમાણુ સત્તા વ્યાપક આગમ પ્રમાણ છે. અનુમાન પ્રમાણ मानी सत्ताने मतावना२ मा प्रमाणे छ "अणु परिमाणु क्वचिद् विश्रान्तम् तरतमशब्द पाच्यत्वात् महत्परिमाणवत् ” भइत् परिभानी २ मा परिमाय तरतम शहाय्य હોવાથી કેઈ સ્થાને વિશ્રાન્ત છે. એટલે કે જેમ તરતમ શબ્દ હોવાથી મહત્ પરિમાણ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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