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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । जगदेकसूरिरेष श्रीधरदेवो बभूव जगति प्रवणः ॥२८॥ तत्सधर्मर ॥ तर्क व्याकरणागम-साहित्य-प्रभृति-सकल-शास्त्रार्थज्ञः । विख्यात-दामनन्दि विद्य-मुनीश्वरो धराने जयति ॥२६॥ श्रीमज्जैनमताब्जिनीदिनकरो नैय्यायिकाभ्रानिल . श्वाळकावनिभृत्करालकुलिशा बौद्धाब्धिकुम्भोद्भवः । योमीमांसकगन्धसिन्धुरशिरोनि दकण्ठीरव स्वैविद्योत्तमदामनन्दिमुनिपस्सोऽयंभुविभ्राजते ॥३०॥ तत्सधर्मर ॥ दुग्धाब्धि-स्फटिकेन्दु-कुन्द-कुमुद-व्याभासि-कीर्तिप्रियस्सिद्धान्तोदधि-वर्द्धनामृतकरःपारार्थ्य-रत्नाकरः । ख्यात-श्री-नयकीर्तिदेवमुनिपश्रीपाद-पद्म-प्रियो । भात्यस्यांभुविभानुकीर्ति-मुनिपस्सिद्धान्त वक्राधिपः ॥३१॥ उरगेन्द्र-क्षीर-नीराकर-रजत-गिरि-श्रीसितच्छत्र-गङ्गा-- हरहासैरावतेभ-स्फटिक-वृषभ-शुभ्राभ्रनीहार-हारामर-राज-श्वेत-पङ्करह-हलधर-वाक-शङ्ख-हंसेन्दु-कुन्दो करचञ्चत्कीतिरीकान्तं धरेयोलेसेदनी भानुकीर्ति-व्रतीन्द्र तत्सधर्मर ॥ ॥३२॥ सवृत्ताकृति-शाभिताखिलकला-पूर्ण स्मर-ध्वंसकः शश्वद्विश्व-वियोगि-हृत्सुखकर-श्रीबालचन्द्रो मुनिः । वक्रेणोन-कलेन-काम-सुहृदाचञ्चद्वियोगिद्विषा लोकेस्मिन्नुपमीयते कथमसौ तेनाथ बालेन्दुना ॥३३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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