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________________ स्वकथ्य स्याद्वादो विद्यते यत्र पक्षपातो न विद्यते । अहिंसायाः प्रधानत्वं जैनधर्मः स उच्यते ।। जहां मताग्रह नहीं होता, वहां पक्षपात और भेदभाव भी नहीं होता। यही अहिंसक दृष्टि है। यही संयम है, संयम जीवन है-"संयमः खलु जीवनम्" । अहिंसा, संयम, तप--- ये धर्म के लक्षण हैं । अहिंसा का अर्थ है रागद्वेष मुक्त होना। इसे हम धर्म की भाध्यात्मिक भूमि कह सकते हैं। अणुव्रतों का अनुपालन करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, यह धर्म का नैतिक स्वरूप है। राग-द्वेष मुक्त होना धर्म का आत्मिक , आध्यात्मिक रूप है। अति भौतिक और प्रौद्योगिक विकास के कारण नैतिकता तथा आध्यात्मिकता के स्रोत सूखते जा रहे हैं, परिणामतः व्यक्ति दिग्भ्रमित है । हिंसा, वैर, द्वेष, अहंकार, स्वार्थ, क्रोध, परिग्रह के तिमिरावरण को विदीर्ण किए बिना उसे त्राण नहीं। शांति उसके लिए मृगमरीचिका बनी हुई है। 'अध्यात्म के परिपार्श्व में' ऐसे निबंधों का संकलन है, जिसका प्रतिपाद्य जैनधर्म-दर्शन है, स्वस्थ समाज की संरचना है; नैतिकता, विज्ञान और अध्यात्म की त्रिवेणी प्रवाहित करना है । आज देश साम्प्रदायिक अभिनिवेश, आतंकवाद, अलगाववाद, जातिवाद, पर्यावरणप्रदूषण से आक्रांत है। इन निबन्धों की मूल चेतना है मानवीय सम्बन्धों का परिष्करण और जीवन-मूल्यों की परिस्थापना। आज संवेगों के सन्तुलन (Balance of emosrons) की परम आवश्यकता है । बढ़ते वैचारिक प्रदूषण को रोकना भी जरूरी है जिसके लिए अनेकांतवादी दृष्टि श्रेयस्कर है। भारत धर्मपरायण देश है, यह अनेकानेक धर्मों-सम्प्रदायों, मतों-विश्वासों का सुन्दर नीड़ है। एतावत, तुलनात्मक धर्म (Comparative Relegion) हमारे अध्ययन-मनन का क्षेत्र हो, तभी सहिष्णुता तथा औदार्य के भावों का प्रादुर्भाव हो सकता है जिससे हमारी राष्ट्रीय भावनात्मक एकता सुदृढ़ हो सकेगी। उदारचेता संत, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री तुलसी जी सदैव मेरे लिए प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। उनके भव्य, तेजस्वी, चुम्बकीय व्यक्तित्व ने मुझे अत्यधिक आकृष्ट एवं प्रभावित किया है। वे अहिंसक समाज की संरचना में अहर्निश लीन देश की पीड़ा-वेदना को समग्रता के साथ अनुभव करने वाले राष्ट्र संत हैं । जैन विश्व भारती, लाडनूं (डीम्ड यूनिवर्सिटी) उनके स्वप्नों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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