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________________ आशीर्वचन व्यक्ति सामाजिक परम्परा से प्रतिबद्ध होकर भी अपनी वैयक्तिक निधि को अप्रतिबद्ध रखता है, चिन्तन की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाए रखता है । डॉ० निजामउद्दीन जन्मना इस्लाम के अनुयायी हैं किंतु कर्मणा उन्होंने अपना चितन क्षेत्र व्यापक बनाया है, विचार सष्टि को नए आयाम दिए हैं । अपने सम्प्रदाय की स्वीकृति का अर्थ दूसरों के द्वारा दृष्ट सत्यों की अस्वीकृति नहीं होना चाहिए, यह आज के वैज्ञानिक युग की अपेक्षा है । अनेकांत ने इस अपेक्षा को सदा प्रस्तुत किया है । अपने सत्यांश को देखने के साथ-साथ हम दूसरों के सत्यांशों को देखने की क्षमता विकसित कर सकें तभी सामाजिक सामंजस्य की स्थिति का निर्माण हो सकता है। अनेकांत का यह दृष्टिकोण आज व्यापक बनता जा रहा है, उदार चितन के लोगों का एक विशाल परिवार बन रहा है। डॉ० निजामउद्दीन ने इस्लाम और जैन धर्म के सिद्धांतों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है, फलत: पुस्तक की उपयोगिता बढ़ गई है। 'महावीर और कबीर की शाकाहारी दृष्टि', 'महावीर और मोहम्मद', 'रमजान : जैन दर्शन के आलोक में,' 'नमाज : आस्था और ध्यान,' 'इस्लाम की रोशनी में अणुव्रत आन्दोलन'----ये शीर्षक पाठक को सहज ही आकर्षित कर लेते हैं । विशुद्ध दृष्टिकोण और विशुद्ध भावना से किया हुआ लेखक का प्रयत्न अपने आप में सफल है। विश्वास है कि पाठक इस सफलता का सहीसही मूल्यांकन करेगा। इस उदार दृष्टिकोण और व्यापक चिन्तन की भूमिका पर आरोहण के लिए डॉ० निजामउद्दीन को साधुवाद देना कोई अतियोग नहीं ११ जुलाई ९३ नाहर भवन राजलदेसर आचार्य तुलसो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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