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________________ अनैतिकता बढ़ रही है । इस कथन के साथ आज जितनी तीव्रता है, हजारों वर्ष पहले भी यह बात इतनी ही तीव्रता के साथ कही जाती थी। मुझे ऐसा अनुभव होता है कि ऐसी बातें मनुष्य के मनोबल को कमजोर बनाती हैं । कोई व्यक्ति नैतिकता का परचम हाथ में लेकर चल भी पड़े तो ऐसी प्रतिकूल हवा में वह उसे कब तक थामकर रख पाएगा? समाज में नैतिक मूल्यों को प्रतिष्ठित करना है तो मनुष्य को अपनी सोच बदलनी होगी और बदलना होगा हवा के रुख को देखकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का मनोभाव । अनैतिकता क्या है ? किसी एक वाक्य में इसको परिभाषित करना संभव नहीं हैं। समाज या राज्य सम्मत मूल्यों के अतिक्रमण को अनैतिकता कहा जाता है । पर कभी-कभी सामाजिक मान्यताएं भी अनैतिकता की पृष्ठपोषक बन जाती हैं। सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोग भी अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने के लिए ऐसे काम कर लेते हैं, जो किसी भी दृष्टि से नैतिक नहीं हो सकते। ऐसी स्थिति में नैतिक मूल्यों की अवधारणाओं को लेकर ऊहापोह हो सकता है। समाज व्यवस्था, कानून और धर्म मनुष्य के जीवन में नैतिकता का प्रभाव न छोड़ सके तो फिर जन-चेतना का जागरण आवश्यक है। जहां जन जागृत हो जाता है, जहां लोकचेतना जाग जाती है, वहां कठिन या असंभव दिखाई देने वाला काम भी सरल और संभव बन जाता है। इस विश्वास के आधार पर ही नैतिकता के प्रति जनआस्था को केन्द्रित किया जा सकता है 1 ७८ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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