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________________ २४. आईने की टूट और घर की फूट राजनातिक, सामाजक, धामक या पाारवाारक काइ भा सगठन टूटता है तो उसका असर पूरे देश पर ही नहीं, पूरे विश्व पर होता है। स्थूल दृष्टि से देखने पर यह बात समझ में आने वाली नहीं है। पर इकोलॉजी को समझने वाले जानते हैं कि घटना कहीं भी हो, उसके प्रकम्पन सब जगह पहुंच जाते हैं। जो संगठन देश में अपना व्यापक प्रभाव रखता हो, उसमें कहीं दरार भी पड़ती है तो अच्छी उथल-पुथल मच जाती है। भारतीय राजनीति के आकाश में संभवतः किसी ऐसे ही कुग्रह का उदय हुआ है, जो राजनीतिक दलों को आक्षेप-प्रक्षेप और टूटन के कगार पर ले जा रहा है। मैं एक मानव हूं। इससे भी आगे कुछ कहूं तो धर्म का आदमी हूं। किसी भी राजनीतिक पार्टी के साथ मेरा अपनापा नहीं है। पर किसी पार्टी में तूफान आता है तो मैं प्रभावित होता हूं। तूफान की गति तीव्र होती है तो कभी-कभी मैं विचलित भी होता हूं। विचलित होने का अर्थ यह नहीं है कि मैं किसी पक्ष-प्रतिपक्ष से बंध जाता हूं। विचलन का अर्थ इतना-सा है कि मैं उस समय सर्वथा निरपेक्ष न रहकर स्थिति को सामान्य बनाने के लिए उसमें हस्तक्षेप कर बैठता हूं। राजनीति के शिखर-पुरुष या संबद्ध व्यक्ति उसे किस रूप में लेते हैं, मैं नहीं जानता। राष्ट्रीय चरित्र की छवि साफ-सुथरी रहे, एकमात्र इसी प्रेरणा से मैं अपना चिन्तन देता हूं। विगत कुछ अर्से से देश में सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अन्तर्-कलह की शिकार हो रही है। यह स्थिति प्रथम बार ही निर्मित नहीं हुई है। इस पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता किन्हीं कारणों से पार्टी से दूर हो गए या कर दिए गए। उनका गठबन्धन पार्टी के असन्तुष्ट लोगों के साथ हो गया, ऐसा कहा जाता है। यह असंतुष्ट शब्द भी समालोच्य है। एक ही पार्टी में रहने वाले आईने की टूट और घर की फूट : ५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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