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________________ अब तक शेष है। इस अवसर्पिणी युग के अंत में उस भयावह स्थिति से सामना करना होगा। पर उसके लक्षण अभी प्रकट होने लगे हैं, यह चिन्ता की बात है। __ चिन्ता किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। समस्या के मूलभूत कारणों की खोज के बाद ही समाधान का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। प्राकृतिक आपदा का एक बड़ा कारण है-मनुष्य का असंयम । प्रकृति का अतिमात्रा में होने वाला दोहन असंयम की प्रेरणा बिना संभव ही नहीं है। यदि मनुष्य अपने जीवन में संयम का अभ्यास करे, तपस्या का प्रयोग करे तो बहुत संभव है कि वह प्राकृतिक आपदाओं को दूर धकेलने या टालने में सफल हो जाए। पौराणिक घटना है। द्वारिका पर कोई असुर कुपित हुआ। देवप्रकोप से उसके दहन का प्रसंग उपस्थित हो गया। वहां के नागरिक अर्हत अरिष्टनेमि की शरण में गए। उनके दिशादर्शन में द्वारिका के लोगों ने तप का सुरक्षाकवच तैयार कर लिया। असुर आता, उपद्रव करना चाहता, पर तपस्या के प्रभाव से उसकी शक्ति प्रतिहत हो जाती। एक-एक कर कई वर्ष बीत गए। नागरिकों के मन का भय मिट गया। वे प्रमत्त होने लगे। एक दिन ऐसा आया, जब द्वारिका में उपवास, आयम्बिल आदि कोई तप नहीं हुआ। असुर को मौका मिल गया। उसने अपनी शक्ति का प्रयोग किया। द्वारिका भस्मसात् हो गई। तपस्या की शक्ति अपरिमित है। आत्मशान्ति और विश्वशान्ति के लिए निरंतर तपोयज्ञ का अनुष्ठान किया जाए तो वांछित लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है और प्रासंगिक रूप में प्राकृतिक एवं मानवीय आपदाओं से भी त्राण मिल सकता है। २० : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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