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________________ आदमी क्रूर नहीं था ? हिंसक नहीं था? मात्रा में कमी-बेसी होती रहती है। अहिंसा की तरह हिंसा और क्रूरता भी एक सचाई है, शाश्वत सचाई है। जब इस वृत्ति को उत्तेजना अधिक मिलती है, वह उभर जाती है, नये-नये रूप धारण कर लेती है। आज पूरा वातावरण ही ऐसा हो रहा है। समाचार पत्र, रेडियो, टी. वी. आदि, संचार-साधन दिन-रात इसी के समाचार देते हैं। ___ एक वर्ष के लिए ही सही, ऐसे समाचारों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाकर देखा जाए कि उसका क्या परिणाम आता है। जब तक मनुष्य का केवल बौद्धिक विकास होता रहेगा और उसे संयम, सहिष्णुता आदि मूल्यों को जीने का रास्ता नहीं मिलेगा, समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा। - जिज्ञासा-कहा जा रहा है कि न्याय न मिलने पर जगह-जगह लोग बन्दूक की भाषा में बात करने लगे हैं। लोगों को समय पर न्याय दिलवाने की क्या व्यवस्था हो? समाधान-न्याय न मिलना समस्या का एक पक्ष हो सकता है। पर देखना यह है कि न्याय का अर्थ क्या है ? इतने बड़े देश में सबकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएं, यह संभव नहीं लगता। फिर किसे कितना न्याय मिला, इसका निर्णय कौन करेगा? ___ एक आदमी ने खुदा से न्याय की मांग की। मूसा आया और बोला'न्याय नहीं, खुदा की बंदगी मांगो।' वह नहीं माना और कहता रहा- 'मुझे तो न्याय चाहिए।' इस पर मूसा बोला--'देखो, तुम शिला के ऊपर बैठे हो और शिला तुम्हारे नीचे है। न्याय चाहते हो तो तुम नीचे हो जाओ और शिला तुम्हारे ऊपर आ जाएगी। यह बात सुन वह घबरा गया और उसने मूसा की मिन्नत करते हुए कहा- 'मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं जहां हूं वहीं रहने दें। न्याय के लिए न्यायालय के द्वार पर दस्तक दी जा सकती है। पर बंदूक की भाषा बोलने वाले क्या स्वयं अन्याय के पथ पर नहीं बढ़ते हैं? न्याय की मांग से पहले उसके सभी पहलुओं पर चिंतन अपेक्षित है। १८८ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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