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________________ जीतने के बाद, वोटों के गलियारे से सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के बाद क्या सम्पर्क सूत्र बने रहते हैं? क्या दिए हुए आश्वासनों के आधार पर लक्ष्य की दिशा में गति होती है? क्या वादे पूरे किए जाते हैं? यदि ऐसा कुछ भी नहीं होता तो वह विश्वास जीवित कैसे रहेगा, जिसके बल पर जनता अपने मत देती है? छोटा राज्यकर्मचारी हो या बड़ा अफसर, निःस्वार्थ भाव से दायित्व-निर्वाह की मानसिकता पंगु बनती जा रही है। पत्रं-पुष्पं या चाय-पानी की व्यवस्था हए बिना किसी भी वर्ग में काम नहीं होता। ऊपर से नीचे तक एक ही क्रम चलता हो तो कौन किसे कहे? जितना बड़ा काम, उतनी बड़ी रकम। उसमें सबकी भागीदारी तयशुदा रहती है। ऐसी स्थिति में कोई व्यक्ति ईमानदारी की बात करता है तो उसे स्थानान्तरण की समस्या से जूझना पड़ता है। विश्वास और कर्तव्यनिष्ठा के सिद्धान्तों की जैसी नृशंस हत्या हो रही है, क्या उन्हें किसी का संरक्षण मिल सकेगा? स्वार्थ-सिद्धि का यह नाटक बड़े लोग ही खेल रहे हैं, यह बात नहीं है। एक वास्तुशिल्पी हो या बढ़ईगिरी करने वाला, उसके भी दुकानदारों के साथ अनुबंध रहते हैं। बढ़िया मारबल, बढ़िया काठ या अन्य किसी भी माल के विक्रय प्रसंग में सम्बन्धित व्यक्ति विक्रेता के साथ जाकर आमने-सामने हो जाता है। दुकानदार उसकी दलाली का पैसा उसके खाते में जमा कर देता है। यह किसी व्यक्ति विशेष या वर्गविशेष की बात नहीं है। आम आदमी ऐसा करता है और आम आदमी को उसका दुष्परिणाम भोगना पड़ता है। चीनी-घोटाले, प्रतिभूति-घोटाले जैसे घोटालों पर संसद में अच्छा-खासा हंगामा देखा जा सकता है, पर इनके मूल में खड़े अविश्वास की कहीं कोई चिकित्सा नहीं होती। आज, जबकि जन-जन का विश्वास चुक रहा है और विश्वास शब्द की विश्वसनीयता क्षीण हो रही है, ऐसी स्थिति में विश्वास शब्द का उपयोग करना चाहिए या नहीं? इस प्रश्न का सीधा-सा समाधान यही है कि जो व्यक्ति विश्वास खो चुके हैं, वे इसका उपयोग भले ही न करें। किन्तु जिनका विश्वास जीवंत है, उनका दायित्व है कि वे टूटते हुए विश्वास को सहारा दें। सन् १६६४ का पूरा वर्ष सत्तादल और प्रतिपक्षी दलों के बीच अविश्वास २ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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