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________________ दिया गया, कठिनाई की शुरुआत यहीं से होती है। मानव धर्म के अनुयायी होने का गौरव सब लोगों को होता ही है, कहना कठिन है। पर होना अवश्य चाहिए। ___जिज्ञासा-आपके आचार्यत्व काल में तेरापंथ धर्मसंघ को मानव धर्म के रूप में व्यापक क्षितिज मिला। क्या इसकी शक्ति भविष्य में भी नैतिक मूल्यों के उत्थान एवं मानव कल्याण के कार्यक्रमों में खपती रहेगी? समाधान-निस्संदेह, अणुव्रत मिशन के साथ मेरा नाम जुड़ा हुआ है। . इसे देशव्यापी बनाने में तेरापंथ समाज ने पूरी शक्ति और श्रम का नियोजन किया है। इन वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय जगत् में भी इसके स्वर मुखर हुए हैं। भविष्य में इस कार्य में समाज की शक्ति नहीं लगने का कोई प्रश्न ही नहीं है। जिस समाज का प्रबुद्ध वर्ग और युवा वर्ग अपने दायित्व के प्रति सचेत रहता है, उसका कोई काम अधर में नहीं झूल सकता। मुझे तो ऐसी प्रतीति होती है कि आने वाले वर्षों में मानव धर्म का क्षितिज और अधिक खुलेंगा और उससे मानव जाति का उपकार होगा। ___ जिज्ञासा-अणुव्रत आंदोलन का भविष्य क्या होगा? इस मिशन के सुदृढ़ भविष्य के लिए आपने क्या कदम उठाए हैं और कौन-से नए कदम उठाने जा रहे हैं? समाधान-मुझे नहीं लगता कि अणुव्रत आंदोलन का भविष्य कभी धुंधला होगा। यह एक ऐसा कार्यक्रम है, जिसे कोई नहीं चलाएगा तो भी चलेगा। यदि मनुष्यता को जीवित रहना है तो अणुव्रत जैसे नैतिक अभियान को चलना ही होगा। उसका नाम बदल सकता है, स्वरूप बदल सकता है, पर प्राणतत्त्व नहीं बदल सकता। ___अणुव्रत का शाब्दिक अर्थ है छोटे-छोटे व्रत। इसका तात्पर्यार्थ है मानव धर्म, असाम्प्रदायिक धर्म, मानवीय मूल्य अथवा स्वस्थ जीवन की न्यूनतम आचारसंहिता। यदि अणुव्रत जैसा कोई उपक्रम सामने नहीं रहेगा तो पारलौकिक हित या मोक्ष की बात तो दूर, वर्तमान जीवन भी जटिल हो जाएगा। अंणुव्रत के भविष्य को सुदृढ़ बनाने की दृष्टि से एक नई योजना सामने आई है-अणुव्रत परिवार योजना । व्यक्ति तक सीमित अणुव्रत की आस्थाओं जिज्ञासा : समाधान : १७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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