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________________ एक ही है कि इसके तीनों रूपों को उपयोगी मानकर काम में लिया जाए। अणुव्रत के मंच से महिलाएं काम करती हैं। अनेक प्रसंगों में उनके शौर्य, साहस और सूझबूझ का परिचय मिलता है। पर उनके दायरे सीमित हैं। जब तक उनको व्यापक कार्यक्षेत्र नहीं दिया जाएगा, उनका कर्तृत्व सामने कैसे आएगा? इस समय महिलाओं के सामने दो रास्ते हैं-आधुनिकता की अंधी दौड़ में सम्मिलित होना और अपनी शक्ति को सत्संकारों के निर्माण व असत्संस्कारों के ध्वसं में नियोजित करना। पहला रास्ता न महिला जाति के लिए हितकर है और न समाज के लिए। महिलाओं को अपनी शक्ति का सदुपयोग करना है तो दूसरा रास्ता ही चुनना होगा। ____ भारतीय संस्कृति में व्यसनमुक्त जीवन को आदर्श माना गया है। शराब एक व्यसन है। यह बहुत पुराना व्यसन है। सभ्यता, संस्कृति, परिवार और शरीर तक को चौपट करने वाला है यह व्यसन। इसकी जड़ें काटने के लिए कई आन्दोलन और अभियान चले, आज भी चल रहे हैं, पर सफलता हासिल नहीं हुई। काश! स्त्री का दुर्गारूप मुखर होता और शराब के विरोध में संघर्ष छिड़ता। काश! वह एक तूफानी नदी का रूप धारण करती और आसपास की बुराइयों का सारा कूड़ा-करकट बहाकर ले जाती। कुछ प्रदेशों की महिलाओं ने समाज और सरकार को अपने दुर्गारूप का परिचय देने में सफलता प्राप्त की हैं। पिछले कुछ महीनों से आन्ध्र प्रदेश की महिलाओं ने शराब के खिलाफ एक आन्दोलन शुरू कर रखा है। इन महिलाओं में न तो अधिक पढ़ी-लिखी महिलाएं हैं और न आर्थिक दृष्टि से बहुत संपन्न घरानों की महिलाएं हैं। अनपढ़, अशिक्षित और गरीब महिलाओं ने संगठित रूप में शराब संस्कृति पर जो धावा बोला है, शराब की हजारों दुकानें बन्द हो गई हैं। उन्होंने शराब के ठेकों की नीलामियों पर भी रोक लगा दी है। उनका हौंसला और काम करने का तरीका देखकर कुछ समाज सुधारक, कुछ युवा और कुछ छात्र भी उनके आन्दोलन को हवा दे रहे हैं। महिलाओं ने राज्य में पूर्ण शराबाबन्दी की मांग की है। एक शराब ही नहीं, मादक और नशीली वस्तुओं का प्रचलन आज जिस गति से बढ़ता जा रहा है, चिन्ता का विषय है। स्वस्थ जीवनशैली में घुसपैठ करने वाले इन पदार्थों को देश-निकाला देने के लिए केवल आन्ध्र नारी के तीन रूप : १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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