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________________ ५२. खिलवाड़ मानवता के साथ दो प्रकार की आपदाएं होती हैं--प्राकृतिक और कृत्रिम। आतवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, बाढ़, तूफान, ज्वालामुखी में विस्फोट और कुछ जानलेवा बीमारियां प्रकृति के असन्तुलन से होने वाली आपदाएं हैं। मनुष्य के उर्वर मस्तिष्क ने इन आपदाओं पर विजय पाने के उपाय खोजे हैं, पर उनका प्रतिशत बहुत कम है। प्रकृति के आगे मनुष्य भी अपने घुटने टिका देता है। मौसम विज्ञान की पर्याप्त सूचनाओं के बाद भी वह अपने आप में विवशता का अनुभव करता है, प्राकृतिक खतरों को टाल नहीं सकता। इसे निसर्ग या नियति कुछ भी माना जा सकता है। कृत्रिम आपदाओं के तीन रूप हैं- तिर्यंच योनि के जीव मनुष्य जाति के लिए अनेक प्रकार की आपदाएं उपस्थित कर देते हैं। कभी-कभी देव-प्रकोप से दुःसह मुसीबतें खड़ी हो जाती हैं। कुछ आपदाएं स्वयं मनुष्य के द्वारा सरजी जाती हैं। अपने हाथों अपने पांवों पर कुल्हाड़ी चलाने की बात कितनी उपहासास्पद लगती है। कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसकी गणना मूों की श्रेणी में होती है। इस प्रकार का आचरण किसी का सुचिन्तित आचरण नहीं होता। चिन्तन के अभाव में अनायास ऐसा घटित हो जाता है। किन्तु सुचिंतित और सुनियोजित रूप से कोई भी मनुष्य ऐसा काम करता है, उसे क्या कहा जाए? बिना किसी विशेष उद्देश्य के व्यापक स्तर पर की जाने वाली तोड़फोड़ या नरसंहार को क्या माना जाए? जो मनुष्य ऐसा षड्यंत्र करता है, उसे किस कोटि में रखा जाए ? देवत्व या मनुष्यत्व की तो उस पर छाया ही नहीं है। उसे तिर्यंच या राक्षस कहने में भी संकोच होता है। ऐसे लोगों के बारे में कवि की कल्पना कितनी यथार्थ है ११२ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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