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________________ कार आदि उसने मांगा। उसे मिला । किन्तु पड़ोसी की संपदा दुगुनी हो गई । यह बात उसके लिए असह्य थी। पड़ोसी का सुख-चैन छीनने के लिए उसने देवी से एक वरदान मांगा- 'मेरी एक आंख फूट जाए।' उद्देश्य क्या था ऐसे वरदान का ? पड़ोसी की दोनों आंखें ज्योतिविहीन हो जाएं। कितनी निरपेक्षता ! कितनी क्रूरता ! निरपेक्ष व्यक्ति जितना क्रूर होता है, सापेक्ष व्यक्ति कभी नहीं हो सकता । परिवार, पार्टी या संघ में जिन व्यक्तियों को अनपेक्षित समझा जाता है, उनमें कोई कमी हो सकती है। वैसे इस संसार में पूर्ण कौन है? यदि प्रमाद करने वाले लोगों के अस्तित्व को अस्वीकार कर दिया जाएगा तो इस धरती पर बचेगा कौन? स्खलितः स्खलितो वध्य, इति चेन्निश्चितो भवेत् द्वित्रा एव हि शिष्येरन्, बहुदोषा हि मानवाः ॥ जो-जो स्खलना करे, वह वध्य है, यह बात निर्णीत हो जाए तो इस धरती पर दो-तीन व्यक्ति ही सर्वथा निर्दोष होकर बच पाएंगे। क्योंकि मनुष्य गल्तियों का पुतला है | बहुत संभलकर चलने पर भी कहीं-न-कहीं स्खलना हो जाती है । भारतीय संस्कृति सापेक्षता की संस्कृति है। यहां वयस्क सन्तान माता-पिता के साये में रहना चाहती है और उनके वृद्ध हो जाने पर भी उनकी सेवा को अपना कर्तव्य मानती है। इसी प्रकार माता-पिता योग्य बच्चों की तरह अयोग्य और अपाहिज सन्तान पर भी अपना ममत्व उंडेलते रहते हैं। यही तो सापेक्षता है । जो परिवार, दल और सम्प्रदाय सापेक्षता की डोर में बंधे रहेंगे, उनके अस्तित्व पर कभी खतरे के बादल नहीं मंडरायेंगे। जहां सापेक्षता होगी, वहां क्रूरता नहीं आ सकेगी। जहां सापेक्षता होगी, वहां केवल स्वार्थचेतना का विकास नहीं होगा। जहां सापेक्षता होगी, वहां नीरसता नहीं होगी । मानसिक कुंठा, घुटन और टूटन के इस युग में सापेक्षता ही वह संजीवनी है, जो व्यक्ति को आत्मतोष दे सकती है और समूह में समायोजित कर सकती है । १०६ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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