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________________ तरह पैसा बहा देता है। सवाल केवल पैसे का ही नहीं है, इस प्रकार की मनोवृत्ति से मनुष्य श्रमपराङ्मुख होता है। बिना पुरुषार्थ किए सफलता पाने की मानसिकता रुग्ण मानसिकता है। संयोगवश किसी व्यक्ति को सफल होने का अवसर उपलब्ध हो सकता है, किन्तु अधिकांश व्यक्ति ऐसी त्रासदी से गुजरकर कहीं के नहीं रहते। भारतीय लोगों में यह परम्परा रही है कि वे बच्चे के जन्म का समय लिखकर रखते हैं। उसके आधार पर जन्मकुण्डली बनवाते हैं। पर विगत कुछ समय से एक नई शैली विकसित होती जा रही है। उसके अनुसार जन्म के लिए मुहूर्त पहले देखा जाता है। किस मुहूर्त में उत्पन्न बच्चा क्या बनेगा, यह बात ज्योतिषियों के माध्यम से पहले ज्ञात कर ली जाती है। फिर डॉक्टर को निर्देश दिया जाता है कि इतने बजकर इतने मिनट पर उन्हें बच्चा चाहिए। डॉक्टर ऑपरेशन करते हैं और पहले से तयशुदा क्षण में बच्चे का जन्म करवा देते हैं। जिस प्रकार अन्य विशेष कार्यों को सम्पादित करने से पहले अच्छा समय देखा जाता है, शुभ समय की प्रतीक्षा की जाती है, वैसे ही बच्चे के जन्म को समयबद्ध करना कैसी बुद्धिमत्ता है? भाग्य को बदलने का यह सीधा-सा तरीका कितना सफल हो पाया है? अनुसंधान का विषय है। पर इसका एक फलित निर्विवाद है कि मनुष्य पुरुषार्थहीनता की दिशा में अग्रसर होगा। भारतीय जीवनशैली पुरुषार्थ से भावित जीवनशैली रही है। कर्म और भाग्य के तटबन्ध कितने ही मजबूत हों, जीवन-सरिता को प्रवाहित रहना पड़ेगा। प्रवाह से अलग होने वाला जल या तो अपने अस्तित्व को समाप्त कर देता है अथवा एक स्थान पर स्थिर होकर सड़ने लगता है। निर्झर हो या नदी, उसकी गतिमयता ही उसको निर्मल बनाकर रखती है। पुरुषार्थ ही मनुष्य के व्यक्तित्व को नया निखार देता है। पुरुषार्थहीनता भविष्य को अन्धकार में धकेलने का स्पष्ट संकेत है। ६२ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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