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________________ शताब्दियों से जिन पदों पर पुरुषों का ही एकछत्र अधिकार हो, वहां स्त्रियों का हस्तक्षेप पुरुषों के लिए असह्य हो सकता है। पर स्वयं स्त्रियां भी स्त्री की प्रगति में दीवार बनकर खड़ी हो जाएं, इससे अधिक विडम्बना क्या हो सकती है? चर्चा है कि इंग्लैण्ड में स्त्रियों ने स्त्री को पादरी बनने का अधिकार देने के विरोध में एक संगठन बनाया है। उस संगठन का प्रदर्शन सबसे अधिक प्रभावशाली रहा है। स्त्रियों द्वारा स्त्री के शोषण का यह एक ऐसा दस्तावेज है, जो युग-युग तक उनकी समझ के आगे प्रश्नचिह्न टांगता रहेगा। भारत जैसे देश में, जहां धार्मिक अन्धविश्वास और पारंपरिक आस्थाएं अधिक पुष्ट हैं, ऐसी घटना को सामान्य नजरिए से देखा जा सकता था। किन्तु विकास की दौड़ में अग्रसर किसी भी राष्ट्र में घटित ऐसे प्रसंग विश्वभर की चर्च-परम्पराओं को आन्दोलित कर रहे हैं, यह आश्चर्य का विषय है। इस बात से मैं सहमत हूं कि स्त्री और पुरुष की प्रकृति में अन्तर है। पर इसका अर्थ यह तो नहीं है कि स्त्री में किसी प्रकार की अर्हता नहीं होती। स्त्रियों की अपनी अर्हताएं हैं, पुरुषों की अपनी अर्हताएं हैं। स्त्री और पुरुष में समानता अथवा समानाधिकार को विवाद का मुद्दा न बनाकर उनको अपनी-अपनी अर्हताओं के विकास एवं उपयोग की छूट मिले तो टकराव की स्थिति उत्पन्न ही नहीं होगी। पर लगता है कि पुरुषों के मन में किसी अज्ञात भय की टिटहरी पंख फड़फड़ाती रहती है। वे सोचते होंगे कि स्त्रियां नियंत्रण में नहीं रहीं तो प्रलय मच जाएगा। यह बात तो पुरुषों के बारे में भी सोची जा सकती है। इसलिए पारस्परिक भ्रम को तोड़कर एक-दूसरे की विकासयात्रा में संभागी बनने की बात सोची जाए तो उसके अच्छे परिणाम आ सकते हैं। एंग्लिकन चर्च ने ग्यारह गिरजाघरों तक सीमित महिला पादरी के अधिकार को सैकड़ों चर्चों के लिए मुक्त कर दिया है। महिलाएं इस पद की गरिमा के अनुरूप अपने दायित्व का निर्वाह कर सकीं तो उनके विरोध में उठी आंधी स्वतः ही शान्त हो जाएगी। इंग्लैण्ड में जो घटना घटी है, उसके परिणामों की प्रतीक्षा ही की जा सकती है। फिलहाल तो इतना मानना ही काफी है कि हजारों वर्षों से चली आ रही परम्परा में जो क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है, वह उल्लेखनीय है। ८२ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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