SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण ० ऐसे समाज की रचना, जिसमें विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय हो। ० व्यक्ति की आभ्यंतर ज्योति को प्रज्वलित करना । • विवेक चेतना और नैतिक चेतना का जागरण करना। ० मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने के सूत्रों का अवबोध देना। ० मानवीय संवेदना का जागरण करना । ० दर्शन की जीवन के साथ संयुति करना। ० मानवीय चेतना में समता और अनुकंपा की जागति करना । ० अपने उत्तरदायित्व का अवबोध देना। ये सारे उद्देश्य अध्यात्म से अनुप्राणित हैं। ये व्यक्ति व्यक्ति के सर्वागीण उन्नयन के उपाय हैं । साहित्य का क्षेत्र । यूवाचार्य श्री के साहित्य सृजन का क्षेत्र किसी एक व्यक्ति, वर्ग या विषय तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने जीवन के प्रत्येक घटक को छूने का प्रयास किया है और मनुष्य के सर्वांगीण विकास में प्रज्यमान सभी विषयों पर लिखा है, कहा है । एकांगी विकास उन्हें अधूरा लगता है । वे मानते हैं'व्यक्ति व्यष्टि ही नहीं, समष्टि भी है। इसलिए उसका विकास सर्वांगीण होकर ही आनन्दप्रद हो सकता है। युवाचार्य श्री जैन मुनि हैं। परिव्रजन उनका व्रत है। परिव्रजन और जनसम्पर्क दोनों संयुक्त हैं। जनता में विभिन्न रुचियां होती हैं, इसलिए आपके चिंतन के विषय भी विविध हैं। आपने धर्म और अध्यात्म, दर्शन और विज्ञान, आचार, आगम, इतिहास, भूगोल, मनोविज्ञान, शिक्षा, प्रेक्षा, योग, जीवन-विज्ञान, राजनीति , समाजनीति, अर्थनीति आदि विषयों पर बहुत कुछ लिखा है, बोला है। साहित्यकार वैज्ञानिक चिंतन को नकारकर पुरानी भावनाओं में ही बहता रहे तो वह एक सदी पहले का साहित्यकार होगा। युवाचार्यश्री युगबोध के साथ चलते हैं और वर्तमान को रूपायित करते हुए अनागत की सार्थक कल्पना करते हैं । वे हर बात को विज्ञान की कसौटी पर कसते हैं तथा धर्म के हर पहलू को वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषित करते हैं । उनका मानना है कि धर्म को यदि विज्ञान का सहारा नहीं मिलता है तो इस युग में धर्म की कोई पूछ नहीं हो सकती। हम विज्ञान और अध्यात्म को सर्वथा पृथक् कर नहीं चल सकते । दोनों का सामंजस्य ही यथार्थ है। राजनीति के बारे में युवाचार्य श्री का चिंतन है कि मानवता की उपेक्षा करके चलने वाली राजनीति स्वयं भी डूबेगी तथा दूसरों को भी डुबोएगी। धर्म और अध्यात्म के बारे में उनका चिंतन क्रांतिकारी रहा है । तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy