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________________ धर्म भावना धर्म का मूल तत्त्व है कषाय-मुक्ति । जो व्यक्ति कषाय से मुक्त होता है वही सही अर्थ में धार्मिक है । क्रोध, मान, माया, लोभ, भय, घृणा, हीनभावन की मनोवृत्ति आदि अधर्म हैं । धर्म उनके मन में टिकता है, जो शक्तिशाली हैं पवित्र हैं, भय रहित हैं। अभय धर्म है, समता धर्म है, क्षमाशीलता धर्म है, दूसरे की उन्नति देखकर सबके विकास की इच्छा करना धर्म है. मित्रता की भावन का विकास करना धर्म है । क्रोध नहीं करना, ऋजुता, सरलता, सन्तोष धर्म है दुनिया में कौन समर्थन नहीं करेगा इस परिभाषा का ? जैन नवकार मंत्र का पाठ करता है तो वैदिक गायत्री का एक मुसलमान कुरान का पाठ करता है तो ईसाई बाइबिल का । यही भेद आ सकता है, लेकिन उपर्युक्त बातों के लिए किसी में अन्तर नहीं आएगा। ये बातें सम्प्रदायातीत हैं धर्म हमारे लिए शरण देने वाला है, किन्तु लोग आज धर्म का उपयोग करन नहीं जानते । धर्म का विश्लेषण सही दृष्टिकोण से किया जाए तो निश्चित रूप से आपके स्वस्थ व सुखी जीवन बिताने का साधन मिल जाएगा । त्याग की शक्ति का उत्स : धर्म की चेतना धर्म की सबसे बड़ी शक्ति है -त्याग की शक्ति । दुनिया में कोई भी तत्त्व ऐसा नहीं है जो त्याग की शक्ति पैदा कर सके। एक मात्र धर्म की चेतना से व्यत्ति में त्याग करने की क्षमता आती है । संसार के सारे शास्त्र भोग की बात सिखाते हैं, बटोरने की बात और इन्द्रियों के विषयों के सेवन की बात सिखाते हैं । एक मात्र धर्म की चेतना व्यक्ति को त्याग सिखाती है। वह कहती है- त्याग करो, विषय का परित्याग करो । अनुपलब्ध को उपलब्ध करने का प्रयत्न मत करो । किन्तु आज मूल पर ही कुठाराघात हो चुका है । चरित्र की चेतना जब लुप्त हो जात है, तब व्यक्ति के मन में यह विचार उठता है कि चरित्रवान् दुःख पाता है और चरित्रहीन सुख भोगता है। जब यही विचार दृढमूल बन जाता है तब उस व्यत्ति का, समाज का या राष्ट्र का चरित्र पक्ष कभी उज्ज्वल नहीं रह सकता। वे कभी उन्नति के शिखर का स्पर्श नहीं कर सकते । धर्म का एक मात्र उद्देश्य है - निर्जरा । उसका एकमात्र लक्ष्य है - पुराने संस्कारों को क्षीण करना । चैतन्य की उपलब्धि धर्म-साधना से ही संभव है । जो चैतन्य को उपलब्ध कराए, पुराने संस्कारों को मिटाए भय को नष्ट करे. प्रलोभन से ऊपर उठाए, वही धर्म है, वही अध्यात्म है । Jain Education International ७९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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