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________________ धर्म भावना ७५ रहना। वर्तमान में जागरूक रहने वाला व्यक्ति एक प्रतिरक्षा पंक्ति खड़ी कर देता है और तब वह अतीत के संस्कारों के प्रभाव से बच जाता है। शरीर रोग से बचता है, वह दवाइयों से नहीं बचता। यह अपनी प्रतिरक्षा पंक्ति से बचता है। हमारे शरीर में एक प्रतिरक्षा पंक्ति है, जो रोग के कीटाणुओं से लड़ती रहती है। पूरा शरीर रोग के कीटाणुओं से भरा पड़ा है। वे उसी में पल रहे हैं पुष्ट हो रहे हैं। फिर प्रश्न होता है कि आदमी स्वस्थ कैसे रह पाता है? शरीर में कीटाणु है, फिर भी हम स्वस्थ इसलिए रह पाते हैं कि शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति होती है। वह एण्टीबॉडी है। यह प्रति-शरीर रोग से बचाता है, कीटाणुओं को समाप्त करता है। उनके आक्रमण को विफल बना देता है। यदि यह प्रतिरोधात्मक शक्ति नहीं होती, यदि यह प्रति-शरीर की प्रक्रिया नहीं होती तो कभी आदमी बिस्तर को छोड़ ही नहीं सकता। हम ध्यान का प्रयोग करते हैं, धर्म की आराधना करते हैं तो इसका अर्थ है कि हम संस्कार के सामने प्रति-संस्कार पैदा कर रहे हैं। जो कर्म का खजाना हमें प्रभावित करता है, जो संस्कार हमें प्रभावित कर रहे हैं, उनके समक्ष ऐसी प्रतिरोधात्मक पंक्ति खड़ी कर देते हैं कि हम संस्कारों के प्रहारों से बच जाते हैं। यह है धर्म का परिणाम और ध्यान का परिणाम । हम इस तथ्य को विस्मृत कर कह देते हैं कि धार्मिक के जीवन में वह विपत्ति क्यों आयी ? अरे, धार्मिक कौन-सा बड़ा आदमी है? ध्यान करने वाला कौन-सी तीसरी दुनिया से आया हुआ है ? आज धर्म करने वाला या ध्यान करने वाला भी अतीत से बंधा हुआ है। न जाने अतीत में उसने क्या-क्या किया था। अपराध का चित्त उसमें विद्यमान था। कितने लोगों के जीवन में उसने कितने प्रकार के विघ्न पैदा किए थे। बाधाएं डाली थीं। आज यदि उसके जीवन में विघ्न-बाधाएं आती हैं तो वह कहता है, मैं अच्छा काम करना चाहता था, पर विघ्न आ गया। अरे, तुम अपने अतीत को देखो। तुमने कितने विघ्न किये थे, कितनी अन्तराय पैदा की थी? उन सबका परिणाम आज तुम्हें भुगतना पड़ रहा है। ___ आदमी अच्छे काम प्रारम्भ करता है तो हजारों विघ्न सामने आ खड़े हो जाते हैं। बुरे काम करो, अवरोध पैदा करने वाले कम मिलेंगे। अच्छे काम करो, अवरोध पैदा करने वाले एकत्रित हो जाएंगे। ऐसा होता है। यह संसार का क्रम है। धार्मिक कौन ? धर्मध्यान वस्तु-सत्यों को खोजने की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है ? यह कोई धर्म-अधर्म का ध्यान नहीं है, किन्तु धर्मों का ध्यान है, वस्तु के पर्यायों का ध्यान है। इससे वस्तु के रहस्यों का उद्घाटन होता है। आज वैज्ञानिक जगत् में जो बहुत सारी खोजें हो रही हैं, उन खोजों के पीछे धर्म-ध्यान ही काम कर रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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