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________________ आत्मानुशासन अनुप्रेक्षा २४१ चाहिए कि उसे यह भान हो सके कि इन्द्रिय- संयम जीवन - विकास के लिए आवश्यक है। बालक की अवस्था परानुशासन की अवस्था है, आत्मानुशासन अत्यन्त जरूरी है। संवेदनाओं पर नियंत्रण पाने का उपाय है परिणामबोध यानी बच्चों को विपाक का बोध कराना, प्रवृत्ति का परिणाम क्या होगा इसकी अवगति देना बहुत जरूरी है । यह पहला उपाय है - संवेदन - नियंत्रण का । संवेदन- नियंत्रण का दूसरा उपाय है - श्वास- नियंत्रण । यह दीर्घश्वास की प्रक्रिया है श्वास नियंत्रण का अर्थ है - पूरा गहरा श्वास / दीर्घश्वास । यह एक विद्यार्थी के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि उसके मस्तिष्क के लिए ऑक्सीजन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है । शिक्षा का सम्बन्ध है मस्तिष्क के साथ। पूरे शरीर को जितना ऑक्सीजन चाहिये उससे तिगुना ऑक्सीजन मस्तिष्क को चाहिये । उसकी पूर्ति दीर्घश्वास के द्वारा होती है । उस स्थिति में मस्तिष्क काफी सक्रिय हो जाएगा। वह तीव्र विकास कर पाएगा । उसकी क्षमता का विकास होगा। यदि ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेगा तो मस्तिष्क सुचारु रूप से काम नहीं कर पाएगा । विद्यार्थी में आलस्य और प्रमाद बढ़ेगा, उसका मन पढ़ाई में नहीं लगेगा। वह एकाग्र नहीं हो पाएगा । सारी गड़बड़ियां पैदा होने लगेंगी। ज्ञान-ग्रहण की शक्ति क्षीण होने लगेगी । इसलिए लयबद्ध होना चाहिए । लयबद्ध श्वास को दो भाषाओं में समझाया गया है १. जितना समय श्वास लेने में लगे, उतना ही समय श्वास छोड़ने में लगे। प्रत्येक बार यही क्रम चले । २. श्वास लेने में कम समय और श्वास छोड़ने में अधिक समय लगे । जैसे श्वास लेने में आठ मात्रा का समय लगता है तो छोड़ने में उससे डेढ़ा - बारह मात्रा का समय लगना चाहिए, जिससे कि कार्बन पूरी मात्रा में निकल जाए। जब कार्बन पूरी मात्रा में निकल जाता है, तब न बेचैनी सताती है और न जम्हाई । इस प्रकार लयबद्ध श्वास में दो बातें समान रूप से होंगी । चाहे तो श्वास लेने, निकालने में बराबर समय लगे या निकालने में ज्यादा समय लगे । इसका लाभ जान लेना भी आवश्यक है । बच्चा जब १३-१४ वर्ष की अवस्था का होता है तब उसकी थाइमस और पिनियल ये दोनों ग्रन्थियां निष्क्रिय हो जाती हैं। थाइमस ग्रन्थि के निष्क्रिय होने का परिणाम है कि उसमें सहनशक्ति, चुस्ती, प्रसन्नता, आनन्द आदि का अभाव हो जाता है । पिनियल ग्रंथि जब निष्क्रिय हो जाती है तब नियंत्रण की शक्ति कम हो जाती है । दीर्घश्वास के प्रयोग से बालक अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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