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________________ प्रामाणिकता अनुप्रेक्षा १८९ लाएगा। भगवान् महावीर ने प्रामाणिकता को स्थान देते हुए नियम बनाये। साधु गृहस्थ के घर से नख काटने के लिए कतरनी मांग कर लाता है, तो वह उससे कपड़ा नहीं काट सकता, क्योंकि उसको नख काटने के लिए कहकर लाया है। बीमार के नाम से मांग कर लाई गई वस्तु वही खा सकता है, दूसरा नहीं । गृहस्थ कहे कि चाय ले जाओ, अमुक साधु को पिला देना। इस वचन से लाई गई चाय वही पी सकता है। वह यदि न पीए तो दूसरा उसको नहीं पी सकता। उसको परठणा (विसर्जित करना) ही पड़ता है। ऐसे अनेक नियम हैं जो प्रामाणिकता के आधार पर हैं। प्रामाणिकता के बिना विश्वास नहीं बढ़ता। हम लोग बृहदकल्प का स्वाध्याय कर रहे थे। उसमें एक कथा आई-एक व्यक्ति शिकार खेलने गया, उसके साथ एक शिकारी कुत्ता था। शिकारी ने छि-छि किया और वह कुत्ता दौड़ा, मृग को मार डाला। दूसरी बार शिकारी ने छि-छि किया कुत्ता फिर दौड़ा पर कोई शिकार नहीं मिला, निराश होकर कुत्ता वापस आ गया। तीसरी बार भी शिकारी ने परीक्षा के लिए छि-छि किया तो कुत्ता नहीं दौड़ा। उसके मन में संदेह हो गया, विश्वास मिट गया। जहां धोखा मिलता है वहां प्रामाणिकता नहीं रहती। धोखा खाने वाला एक-दो बार ही खाता है, फिर वह नहीं खाता। आज हर क्षेत्र में अप्रामाणिकता स्थापित हो रही है, सूत्रकृतांग में भगवान् महावीर ने कहा है-'मा अप्पेण लुपहा बहु'-थोड़े के लिए ज्यादा मत गंवाओ। प्रामाणिकता का आचरण स्वामी विवेकानन्द अमरीका गए। उनसे किसी अमरीकन ने पूछा- 'महात्मा गांधी की विशेषता क्या है ? क्या वे धनपति हैं या सत्ताधीश हैं ?' विवेकानन्द ने मुस्कराकर कहा- वे धन और सत्ता दोनों से अकिंचन हैं।' 'तो फिर उनकी क्या विशेषता है ?' उस व्यक्ति ने पूछा। विवेकानन्द ने कहा-'महात्मा गांधी में तीन विशषताएं हैं। वे विशेषताएं उन्हें भारतीय धर्म से प्राप्त हुई हैं। वे ये हैं १. प्रामाणिकता। २. सत्याग्रह। ३. सादगी। इन तीनों में पहली विशेषता प्रामाणिकता है। हर व्यक्ति, समाज या देश के चरित्र की ऊंचाई का मानदण्ड प्रामाणिकता से होता है। हिन्दुस्तान अपने अतीत में इस मानदण्ड से बहुत उन्नत रहा। लगभग पचीस सौ वर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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