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________________ धैर्य अनुप्रेक्षा पौराणिक अनुश्रुति है कि इन्द्र ने अपनी परिषद् में कहा-महावीर जैसा कष्टसहिष्णु मनुष्य इस पृथ्वी पर कोई दूसरा नहीं है। उन्हें कोई देव भी अपने पथ से विचलित नहीं कर सकता। परिषद् के सदस्य देवों ने इन्द्र की बात का अनुमोदन किया, किन्तु संगम नाम का देव. इन्द्र की बात से सहमत नहीं हुआ। उसने कहा-'कोई भी मनुष्य इतना कष्टसहिष्णु नहीं हो सकता जिसे देवता अपनी शक्ति से विचलित न कर सके। यदि आप मेरे कार्य में बाधक न बनें तो मैं उन्हें विचलित कर सकता हूं।' इन्द्र को वचनबद्ध कर संगम मनुष्यलोक में आया। उसने महावीर को कष्ट देना शुरू किया। केवले एक रात्रि में बीस बार मारक कष्ट दिया। उसने हाथी बनकर महावीर को आकाश में उछाला, वृश्चिक बनकर काटा, वज्र चींटियों का रूप धारण कर उनके शरीर को लहूलुहान किया, फिर भी महावीर के मन में कोई प्रकम्पन नहीं हुआ। विचलन तब होता है जब हम हिंसा से प्रताड़ित होते हैं। हिंसा की प्रताड़ना तब होती है जब हम संवेदन के साथ ध्यान को जोड़ते हैं और यह मानने लग जाते हैं कि कोई दूसरा मुझे सता रहा है। अहिंसा का सूत्र है कि ध्यान को संवेदन के साथ न जोड़ें और किसी दूसरे को कष्टदाता न मानें । महावीर अपने कर्म-संस्कारों के सिवाय किसी दूसरे को दु:ख देने वाला नहीं मानते थे और अपने ध्यान को चैतन्य से विलग नहीं करते थे। इसलिए संगम भयंकर कष्टों का वातावरण पैदा करके भी अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर सका। संगम ने महावीर को विचलित करने का दूसरा रास्ता अपनाया। उसने रूपसियों की कतार खड़ी की और महावीर को अपने प्रेम-जाल में फंसाने का प्रयत्न शुरू किया। अहिंसक को प्रतिकूल और अनुकूल-दोनों परिस्थितियों पर समान रूप से विजय प्राप्त करनी होती है। अनुकूल वातावरण में अविचलित रहना, प्रतिकूल वातावरण की विजय से अधिक कठिन है। पर चैतन्य की महाज्वाला के प्रदीप्त होने पर प्रतिकूल और अनुकूल-दोनों ईंधन उसमें भस्म हो जाते हैं, उसे भस्म नहीं कर पाते। ... संगम का धैर्य विचलित हो गया। उसने महावीर के पास आकर कहा-भंते ! अब आप सुख से रहें । मैं जा रहा हूं। आपकी अहिंसा विजयी हुई है, मेरी हिंसा पराजित । मैं आपको कष्ट दे रहा था और आप मुझ पर करुणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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