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________________ मानसिक संतुलन अनुप्रेक्षा १७९ जाता है, किन्तु आज की वैज्ञानिक खोजों ने इस बात पर बहुत प्रकाश डाला है। पागलपन जो होता है वह केवल मानसिक उलझनों के कारण नहीं होता। असंतुलित भोजन के कारण भी आदमी पागल बन जाता है। यह जो पोषक तत्त्वों के निर्देशन का विषय है, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। कोरा अन्न ही अन्न खाया, कार्बोहाइड्रेट खाया, श्वेतसार खाया, पेट तो भर जाएगा पर मस्तिष्कीय संतुलन बिगड़ जाएगा। प्रोटीन भी चाहिए, वसा भी चाहिए, लवण भी चाहिए. सब चाहिए। जब भोजन पूरा संतुलित होता है तो मस्तिष्क भी ठीक काम करता है। किन्तु जिस व्यक्ति को बहुत गुस्सा आता है, जो बहुत चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है, बार-बार लड़ाई-झगड़ा करता है, दिनभर परिवार को सताता है तो उसको यह भी सोचना चाहिए कि कोई-न-कोई आहार का दोष इसके साथ जुड़ा हुआ है। मानसिक असंतुलन का पांचवां कारण है-नाड़ी की दुर्बलता। नाड़ी संस्थान के दो मुख्य अंग है-एक मस्तिष्क और दूसरा सुषुम्ना का सारा हिस्सा। सुषुम्ना-शीर्ष और सुषुम्ना स्पाईनल कॉर्ड। ये नाड़ी-संस्थान के दो महत्त्वपूर्ण अंग हैं। जिसका स्पाईनल कॉर्ड या पृष्ठरज्जु दूषित होता है, उसका संतुलन बिगड़ जाता है। आप लोगों को कठिनाई होती है सीधे बैठने में। नाड़ी-संस्थान की दुर्बलता, पृष्ठरज्जु की दुर्बलता और मस्तिष्क की दुर्बलता-ये सब असंतुलन के कारण बनते हैं! आजकल एक चिकित्सा पद्धति चली है-ओष्टियोपैथी। इस चिकित्सा में और कुछ नहीं किया जाता केवल स्पाईनल कॉर्ड पर कुछ प्रेशर दिया जाता है। इससे सारे रोगों की चिकित्सा की जाती है। यहां रोगों की जड़ है, यहीं से सारे शरीर में नर्वस जाते हैं, फैलते हैं। यहां तंतुओं का, स्नायुओं का और धमनियों का जाल बिछा हुआ है, सब यहीं से होकर गया है। मूल यहीं है। यहीं से सारे अलग-अलग होते हैं। यह हमारा केन्द्रीय नाड़ी-संस्थान है। और इसके दोनों ओर अनुकम्पी और परानुकम्पी नाड़ी संस्थान है। यहीं से सारा-का-सारा हो रहा है। जब नाड़ी-संस्थान ही दुर्बल हो जाता है तो फिर संतुलन की बात कही नहीं जा सकती। चाहे हजार बार ध्यान भी करें, संतुलन नहीं आएगा। ध्यान होगा ही नहीं, करेंगे भी क्या। ध्यान तो तभी हो सकता है जब नाड़ी-संस्थान मजबूत होता है। कोई आदमी भारी-भरकम है, लगेगा कि बड़ा हट्टा-कट्टा है। यदि शरीर में मांस कम है तो लगेगा कि यह तो थका, पतला-दुबला आदमी है। हम उसको कमजोर मान लेंगे और भारी-भरकम को शक्तिशाली मान लेंगे। यह मानना सही नहीं होगा। तेजो यस्य विराजते स बलवान् स्थूलेषु क: प्रत्यय:' जिसमें तेज है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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