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________________ समन्वय अनुप्रेक्षा १४५ तुम्हें केवल एक अंश से परिचित करा रहा हूं। साथ ही साथ मैं पूर्ण सत्य की अभिव्यक्ति में अपनी असमर्थता प्रकट करता हूं कि मुझसे पूरा सत्य कहा नहीं जा सकता। मैं तुम्हें सत्य के निकट ले जा रहा हूं। यह है स्यात्' शब्द की सार्थकता। सापेक्षता महान विज्ञान है ___ स्यात्' शब्द सापेक्षता का सूचक है। उसके बिना सत्य को जाना नहीं जा सकता और उसकी व्याख्या भी नहीं की जा सकती। यह सचाई ढाई हजार वर्ष पूर्व प्रकट हो चुकी थी, किन्तु हमारे दार्शनिक इसे पकड़ नहीं पाए। हमें साधुवाद देना चाहिए आज के वैज्ञानिक को जिसने यह सप्रमाण प्रतिपादित किया कि सापेक्षता के बिना सत्य की व्याख्या नहीं की जा सकती। उसने इस सचाई को इतनी प्रखरता से पकड़ा कि आज समूचा विज्ञान सापेक्षता के सिद्धांत पर चल रहा है। सापेक्षता का सिद्धांत जब तक विकसित नहीं हुआ था, तब तक की सारी मान्यताएं, विज्ञान की सारी धारणाएं आज मिथ्या प्रमाणित हो रही हैं। आज भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में, गणित के क्षेत्र में, सांख्यीकी विज्ञान के क्षेत्र में, अनेकांत का खुलकर प्रयोग किया जा रहा है; सापेक्षता का उपयोग मुक्तभाव से हो रहा है। आज विज्ञान की महत्त्वपूर्ण मान्यता है कि सापेक्षता के बिना किसी तत्त्व की व्याख्या नहीं की जा सकती। जब महान् वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने कहा कि देश और काल सापेक्ष हैं, तब वैज्ञानिक जगत् में एक भयंकर हलचल हुई थी। अनेक वैज्ञानिकों ने इसको स्वीकार नहीं किया। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि देश और काल सापेक्ष कैसे हो सकते हैं। किन्तु धीरे-धीरे यह सापेक्षता बुद्धिगम्य होती गई, प्रमाणित होती गई और आज देश, काल की सापेक्षता का सिद्धांत सर्वमान्य हो गया। हम सारी घटना की व्याख्या देश और काल के आधार पर करते हैं, किन्तु यह भुला देते हैं कि देश और काल सापेक्ष हैं। देश-काल के सापेक्ष होने की बात एक वैज्ञानिक ने कही, न कि अनेकान्त और स्याद्वाद को मानने वाले जैनों ने। उन्होंने इस दिशा में कोई महत्त्वपूर्ण काम नहीं किया। कितना अच्छा होता कि जो बात आइन्स्टीन ने कही वह बात कोई जैन दार्शनिक कहता, अनेकान्तवाद को मानने वाला प्रतिपादित करता। क्या उनके सामने ये कल्पनाएं स्पष्ट नहीं थीं ? सापेक्षता का विचार स्पष्ट नहीं था ? सारी कल्पनाएं और विचार स्पष्ट थे, पर नये सन्दर्भ में उसके कथन की बात नहीं सूझी। क्या जैन मानते हैं कि काल निरपेक्ष है। नहीं, काल सर्वथा सापेक्ष है। हमने काल को तीन भागों में विभाजित किया-भूतकाल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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