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________________ सत्य अनुप्रेक्षा १२९ जाता है। इस आधार पर सत्य की परिभाषा यह हो जाती हैसत्य है-काया की ऋजुता असत्य है-काया की वक्रता सत्य है-वाणी की ऋजुता असत्य है-वाणी की वक्रता सत्य है-भाव की ऋजुता असत्य है-भाव की वक्रता सत्य है-संवादी-प्रवृत्ति, कथनी असत्य है-विसंवादी प्रवृत्ति, करनी करनी की समानता। की असमानत । . इन चारों अंगों का समग्रता से अनुशीलन करना ही सत्य का महाव्रत है। असत्य और मायाचार का निकट का सम्बन्ध है। जो कुशल मायावी नहीं होता, वह कुशल असत्यभाषी भी नहीं होता। सत्य में कोई छिपाव नहीं होता। असत्यभाषी को बहुत छिपाना पड़ता है। उसे एक बड़ा-सा मायाजाल बिछाना पड़ता है। इसीलिए भगवान् महावीर ने असत्य के लिए 'मायामृषा' शब्द का प्रयोग किया। जिस प्रवृत्ति में माया है, दूसरों को ठगने की मनोवृत्ति है और असत्य है-यथार्थ को उलटने का प्रयत्न है, वहां हिंसा कैसे नहीं होगी ? वह समूचा प्रयत्न हिंसा का प्रयत्न है इसलिए असत्य बोलना हिंसा से भिन्न वस्तु नहीं है । सत्य को स्वयं खोजें ___ हमने सत्य की खोज प्रारम्भ की है। मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है-सत्य की खोज। प्राणी जगत् में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो सत्य की खोज कर सकता है। दूसरे सारे प्राणी, फिर चाहे वे पशु-पक्षी हो या देवता, कोई भी सत्य की खोज नहीं कर सकता। मनुष्य के पास जितना विकसित मस्तिष्क, विकसित ग्रंथियां और अतीन्द्रिय ज्ञान के केन्द्र हैं, उतने दूसरे किसी भी प्राणी के पास नहीं हैं। इसीलिए मनुष्य ही सत्य की खोज कर सकता है। मनुष्य जीवन का सार है-सत्य की खोज, सत्य की उपलब्धि । भगवान महावीर ने कहा-'अप्पणा सच्च मेसेज्जा' अपने आप सत्य की खोज करो। हम सत्य की खोज के लिए प्रस्तुत हैं। सत्य खोजना है और स्वयं को ही खोजना है। ऐसा नहीं होता कि एक व्यक्ति सत्य खोजे और दूसरा उपयोग करे। वैज्ञानिक जगत् में यह होता है कि एक व्यक्ति सत्य को खोजता है और सारा जगत् उसका उपयोग करता है। किन्तु अध्यात्म का संसार इससे भिन्न है। इस जगत् में जो व्यक्ति सत्य को खोजता है, वही उसका उपयोग करता है। जो खोजेंगे वे पायेंगे, जो नहीं खोजेंगे, वे कभी नहीं पायेंगे। जो खोजेंगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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