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________________ — अनुभव का उत्पल) अनुभव का उत्पल L प्रेम के प्रतीक मेरे साध्य हैं वे स्थूलभद्र , जो कोशा के कमनीय हाव-भाव और शृंगार से लव भर भी विचलित नहीं हुए। मेरे साध्य हैं वे स्थूलभद्र, जिन्होंने कोशा की बांकी चितवन की अवहेलना कर डाली। “अच्छि पिच्छियाई कोसा न जेण गणियाई।" मेरे साध्य हैं वे विजय, जिनकी काम-विजय आज भी हमें विजय के लिए अभियान की प्रेरणा दे सकती है। मेरे साध्य हैं वे विजय, जिनका भेद-चिन्तन अभेद को देख ही नहीं पाया। वह अपवाद ही रहा। मेरे साध्य हैं वे सुदर्शन, जिनके चैतन्य दीप को प्रलय-पवन न बुझा सका और जिन्हें मौत न डरा सकी। मेरे साध्य हैं वे सुदर्शन, जो काजल की कोठरी में बैठकर भी कालिख से बचे और जिन पर कजरारी आंखें कालिख नहीं पोत सकीं। -७५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003138
Book TitleAnubhav ka Utpal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size5 MB
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