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________________ तेरापंथी आस्था की धुन : नन्दन-निकुंज २१७ और परम पुनीत, परमप्रेमास्पद गुरु-स्तवन । नन्दन-निकुंज में मन-मधुकर केवल रसग्राही प्रतीत होता है। शास्त्रीय चेतना का अहंकार, अहम् चैतन्य और पांडित्य की प्रदर्शिका मनोवृत्ति इसमें नहीं है बल्कि इसमें हृदय के सहज अनुभव-संसार की झंकृति गुंजायमान है । ___ 'नन्दन निकुंज' का अनुक्रम आठ शीर्षकों तथा एक सौ सत्तासी गीतिकाओं में विभाजित है। प्रथम चरण अर्हत उत्कीर्तना है जिसमें कवि उर्जस्वी स्वर में गाता है "प्रभो! तुम्हारे पावन पथ पर जीवन अर्पण है सारा । बढ़े चलें हम । रुकें न क्षण भी, हो यह दृढ़ संकल्प हमारा ॥" आत्म निवेदन के रूप में कभी वन्दना-भाव पुलकित होकर श्री पार्श्व देव तो कभी तीर्थंकर महावीर के चरणों में ध्यान धरते हुए हर श्वास में स्पंदित कवि की भावना बार-बार यही कहती है कि---- "आज चारों ओर, घोर अशान्ति जन-जन को सताती । रो रहा मानव हृदय यों, सिकुड़ती है साथ छाती ।। इस विषाक्त उदन्त में, तू ही सहारा एक शान्ति ।" इस रचना का द्वितीय सोपान 'मर्यादा-महोत्सव उत्कीर्तना' तेरापंथ धर्मसंघ की विश्व-विश्रुति का मूलाधार है-- इसकी अनुशासनात्मक संगठन भीत्तिका। इसका प्रथम शिलारोहण आचार्य भिक्षु के कर कमलों से हुआ । उनके निर्दिष्ट 'लिखतों' की प्रत्येक धाराओं के आधार पर वि. सं. १८५९ में श्रीमद् जयाचार्य ने मर्यादा महोत्सव का सूत्रपात किया। 'मर्यादा-महोत्सव उत्कीर्तना, खण्ड में चौवन गीत हैं। इनमें साधना के उच्च शिखरों पर जीने के विज्ञान को कोटि-कोटि कण्ठों से ध्वनित करने की प्रतिज्ञा झलकती है। अधिकांश गीतों में आचार्य भिक्ष के प्रति अटल संकल्प झलकता है । श्री जयाचार्यजी के प्रति कवि की विनम्र गीतांजली दृष्टव्य है--- "मयार्दोत्सव की आभा अभिराम है। जयाचार्य की सूझ-बूझ का सुन्दरतम परिणाम है।" मर्यादोत्सव तेरापंथ में, अभिनव कल्प-प्रयोग है, संघ-चतुष्टय स्वास्थ्य साधना का अन्यतम योग है। कायाकल्प करें सब पहला काम है।" केवल तर्कवाद से पीड़ित इस समूचे संसार को 'तेरापंथ' का अवतरण जहाँ अमृतदान है वहीं मर्यादा महोत्सव इसकी अनुपम उपलब्धि - "भिक्खण' का भाव भरा मन्थन, श्री 'जयाचार्य' का सद्ग्रंथन । 'तुलसी' का सफल-सुफल चिन्तन, मंजूल मर्यादा-महोत्सव है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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