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________________ १९८ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान राजऋषि जी के वर्णन में चमक्या सूरज-सा भैक्षप-गण गिगतार हो, जीवन जीयो बण ज्योतिर्मय अंगार हो, उपमान और उपमेय में अभेद वणित करते हुए कामधेनु है विश्व भारती....२१ कनकप्रभा केसर क्यारी...२३ उक्त कथन रूपक अलंकार के निदर्शन हैं। कथाओं में कथोत्प्ररोह की भांति गीतोत्प्ररोह की शैली इस गीत की अपनी विशेषता है । मूल गीत के प्रवाह के साथ तेरह इतर गीतों का समावेश हुआ है जो इस गीत के प्रवाह को अवरूद्ध नहीं करते अपितु उसे गति ही प्रदान करते हैं । ये तेरह गीत तेरापंथ आचार्य भिक्षु आदि से संबंधित हैं। भक्ति-रस का पिपासु जब तेरापंथ प्रबोध के प्रवाह में बहता है तब बीच बीच में 'रू रूं में सांवरियो बसियो', 'प्रभो! यह तेरापंथ महान', 'घणा सुहाओ माता दीपां जी रा जाया', 'स्वामीजी थारी साधना री मेरु सी उँचाई' जैसे गीत रागिनियों के परिवर्तन की दृष्टि से गायक व श्रोता दोनों को भांतिभांति के व्यञ्जन के समान प्रतीत होते हैं। कवि ने मूल गीत में अन्य गीतों का संकेत मात्र किया है जो इस गीत-गुलदस्ते में खिले रंग-बिरंगे फूलों की तरह इसकी शोभा को प्रवर्धमान बना रहे हैं। आगम कवि का आधार है। अतः आगमिक सूक्तों का सहज अवतरण गीत में एक नया आलोक भर रहा है। प्रमाद की घुमावदार घाटियों में 'समयं गोयम मा पयायए' का प्रतिबोध अप्रमत्तता का दिव्य दीपक है। इसी प्रकार 'लाभालाभे सुहे दुहे जीणे मरणे में सम रहणो' जैसे सूक्त से समत्व का सम्प्रेषण पाठक के मन में होता रहता है। यथास्थान लोकोक्तियाँ व कहावतों का भी उपयोग हुआ है । भीखण जी के व्यक्तित्व में बचपन से ही महापुरुष के लक्षण प्रतिबिम्बित हो रहे है-'होनहार विरुवान चीकणा-पात, इस बात का साक्षी है 'कर कंगण आंख्यां स्यूं दीखै फिरक करसी आरसी' आदि कहावतें गीत को समृद्ध बना रही हैं। ___ कवि स्वतन्त्र होता है । वह भाषाओं के आग्रह में नहीं बंधता। राजस्थानी भाषा में रचे इस गीत में सस्कृत, हिन्दी, गुजराती, उर्दू और अंग्रेजी भाषा के शब्द प्रयुक्त हैं । आचार्य श्री तुलसी की यह उदार मनोवृत्ति भाषायी आग्रह की दीवार को लाँघकर भावों को एक नया क्षितिज प्रदान कर रही है। हर भाषा के शब्द पानक रसवत एक नया मिठास, एक नया आस्वादन पैदा कर रहें हैं । इकरार, तकरार, काफिलो, जुर्मानों जैसे उर्दू शब्द एवं मूड, सीन और युनिवर्सिटि जैसे अंग्रेजी शब्द अगदंकार, आमय, अधि देवता, अभिनिष्क्रमण, अध्यात्मतंत्र जैसे हिन्दी के शब्द एवं खतरी, आरसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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