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________________ १८० तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान "वरस पनरै आसरै वय जाणी, सुत पीउ छांड सुमता आंणी । सती रूपांजी महा स्याणी।"१२ X आसूजी उत्तम आरज्यां, पीउ छांड व्रत पाल । सतियां माहे सिरोमणी, गुणिये नित गुणमाल ।।१३ नारीगत क्षमाशीलता एवं विनयशीलता का वर्णन भी किया गया है, साथ ही कठोर तपस्या का भी परिचय इसमें मिलता है सुवनीत घणी सतगुर तणी, सोभा गण मांहि सवाय । विनयवंती ने खिम्यावन्ती, हरष घणो हीया माय ।। समणी मुद्रा कर सोभती, सील सिरोमणी सुहाय । सन्त सत्यां नै सुहामणी, तप करनै तन ताप ।।१४ जयाचार्य का यह काव्यमय चारित्रिक संयोजन काव्य नायकों को उनके मूल जीवन से अधिक दूर अथवा कल्पना लोक में नहीं ले जाता बल्कि उन्हीं के जीवन के इर्द-गिर्द घूमता हुआ उनके मौलिक स्वरूप को उद्घाटित करता है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है मानो जीवन का प्रत्येक क्षण उन्होंने काव्य नायक के साथ ही व्यतीत किया हो। जयाचार्य की इस काव्य दृष्टि की विशिष्टता का उल्लेख करते हुए मुनि सुखलालजी ने लिखा है"जयाचार्य के पास वह स्फटिक राडार दृष्टि है जो अपने परिसर में घटने वाली सामान्य से सामान्य विशेषता को भी प्रतिबिम्बित कर सकती है । १५ तेरापन्थ के राजस्थानी काव्यों की कड़ी में आचार्यश्री तुलसी की प्रथम काव्य कृति 'कालूयशोविलास' है, जिसमें आपने अपने गुरु एवं आचार्य कालूगणि के चरित्र को संजोया है। आचार्यश्री के हृदय में अपने गुरु के प्रति आदर भाव रहा है, जिसका प्रकटन प्रारम्भ से हो जाता है। जहाँ वे शैशवावस्था में ही उनके महान् होने की सम्भावना को व्यक्त करते "शैशववय में पिण शिशुता री किंचित् नही कुवांण । भर जोवन में वो गणवन में बणसी आगीवांण ॥१६ कालगणि के जीवन में गुरुदेव मघवागणि की भूमिका बहुत अहम् रही, उन्होंने ही कालूगणि को पूर्णरूपेण प्रशिक्षित किया था । गाना, बोलना, व्याख्यान करना, ढाल गाना आदि कालूगणि को सिखाया गया था, लेकिन दुर्भाग्यवश पावन गुरु की सन्निधि दीर्घकाल तक प्राप्त नहीं हो सकी। बाल सन्त के गुरु-विरह को आचार्यश्री ने बहुत मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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