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________________ तेरापंथ के राजस्थानी काव्यों में चारित्रिक संयोजन १७७ इन काव्यों के काव्य नायक आचार्य, गणि, सन्त और सतियाँ रही हैं, जिन्होंने त्याग - तपश्चर्या के बल पर अपने व्यक्तित्व को ऊँचा उठाया है, साथ ही सद्कर्म एवं प्रयासों से अपने पंथ की सेवा-सुश्रुषा करते हुए उसके विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। ये गुण-धर्म लगभग सभी पात्रों में समरूप से दृष्टव्य हैं, अन्तर केवल रचनाकार की प्रस्तुति एवं प्रकटन का है । वे सन्त जो महान् एवं अलौकिक गुणों से युक्त होते हुए भी सरल रहे, उनकी सरलता का और वे सन्त जो तेरापंथ की पदीय परंपरा से अलग रहते हुए भी महान् हुए उनकी महानता का गुणवर्णन किया गया है । प्राचीन साहित्यिक ग्रंथों में नायकों की जिन श्रेणियों व प्रकारों का वर्णन किया गया है उनमें 'धीरोदात्त' नायक ही प्रस्तुत काव्यों के चरित्र के समान कहे जा सकते हैं । 'धीरोदात्त' नायक का परिचय देते हुए लिखा गया है - " धीरोदात्त नायक आत्मश्लाघा नहीं करता, वह क्षमाशील होता है, गंभीरता से अलंकृत होता है, हर्ष-शोकादि भावों से अप्रभावित रहता है, अपने कार्यों में स्थिर रहता है ।" सन्तों के चरित्र-दर्शन से इन समस्त गुणों का यत्किचित् दिग्दर्शन हो जाता है । हाँ कुछ विशिष्टताएं धीर प्रशांत नायक की भी दृष्टव्य होती हैं, धीरललित अथवा धीरोद्धत नायक के गुण लेशमात्र भी दिखाई नहीं देते हैं । प्रस्तुत पत्र में जयाचार्य कृत 'अमरगाथा' 'कीर्तिगाथा', और आचार्य श्री तुलसीकृत 'कालूयशोविलास', 'डालिम चरित्र', 'माणक महिमा', 'मगन चरित्र' को अध्ययन का आधार बनाया गया है । पद्यात्मक कृतियों में चारित्रिक संयोजन अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ किया गया है । काव्य-कलेवर चाहे संक्षिप्त हो अथवा विस्तृत चरित्रों का उद्घाटन यथेष्ट रूप में हो गया है और यही इन कृतियों की प्रमुख विशिष्टता कही जा सकती है । इन काव्यों में चरित्र संयोजन की प्रमुख विशेषता यह है कि पाठक के सामने मुनियों के चरित्र को खुली किताब के समान रख दिया है । कहीं भी काव्यात्मक ग्रंथियों अथवा लाक्षणिकता के बोझ तले चरित्रों को दबाने का प्रयास नहीं किया है । जन्म से लेकर अवसान तक इस प्रकार हुआ है कि रेखाचित्र की भांति सम्पूर्ण ही होता है । चारित्रिक विशिष्टताओं को भी सीधे की घटनाओं का चित्रण व्यक्तित्व का दर्शन सहज रूप में अंकित कर दिया गया है । 'अमर गाथा' में मुनि सतयुगी के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा गया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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