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________________ विनीत- अविनीत एकल तुलनात्मक अध्ययन हमारे वर्तमान युग की एक विशेष दृष्टि है । चतुर्थाचार्य जयाचार्य ने आज से सौ वर्ष पहले ही इसके महत्व को समझ लिया था । इसीलिए उन्होंने सिद्धान्तसार के साथ-साथ " आगमिक अधिकार" के नाम से तुलनात्मक अध्ययन की दिशा में एक और सुदृढ़ कदम उठाया था । उनका यह ग्रन्थ पूरा नहीं हो सका । पर यदि पूरा हो जाता तो न केवल हम उनके अगाध पांडित्य से ही परिचित होते अपितु आगम - साहित्य के बारे में हमें बहुत सारी गुत्थियों का भी समुचित उत्तर मिल जाता । मरजादा तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान "" 11 धर्म-सम्प्रदायों की उपयोगिता को कायम रखने के लिए मर्यादाओं का अपना विशेष स्थान है। पूरा आगम साहित्य विशेषतः छेद सूत्र इन्हीं विधिनिषेधों से भरे पड़े हैं। आचार्य भिक्षु से लेकर आचार्य तुलसी तक तेरापंथ के सभी आचार्यों ने इस महत्व को आंक कर समयानुसार अनेक मर्यादाओं का निर्माण किया है । उनके पचासों पत्र संघ के साहित्य भण्डार में सुरक्षित हैं । निश्चिय ही इन मर्यादाओं ने तेरापंथ को स्पृहणीय संगठन क्षमता प्रदान की है । इन सबके समुचित रूप को ही हम तेरापंथ का संविधान कह सकते हैं । इस दृष्टि से तृतीय आचार्य रायचन्दजी कृत 'पांच व्यवहार' कृति का भी अपना विशेष महत्त्व है । लिखत Jain Education International 11 मर्यादा का ही एक दूसरा रूप है लिखत । मर्यादा जहां आचार्य द्वारा निर्देशित होती है वहां लिखतों पर हस्ताक्षरों के रूप में सदस्यों की स्वीकृति अंकित रहती है । तेरापंथ का अपना कोई विधिवत् स्वीकृत संविधान नहीं है । समय-समय पर मर्यादाओं तथा लिखतों के रूप में जो व्यवस्था उभरी है वही इसका संविधान है । मर्यादामहोत्सव के अवसर पर जो जिस पत्र का सार्वजनिक रूप से वाचन - परिचय किया-कराया जाता है वह तेरापंथ का सबसे पहला मर्यादा -पत्र है । वही इस धर्मसंघ का अपना सुदढ़ मेरूदंड है । लिखत व्यक्तिगत रूप से भी होते हैं तथा सामूहिक रूप से भी होते हैं। इनसे तेरापंथ के साहित्य के संघीय ढांचे के विकास - विस्तार का भी सटीक परिचय मिलता है । हाजरी मर्यादा का ही एक तीसरा रूप है हाजरी । आचार्य भिक्षु ने जो मर्यादाएं बनाई थी। उनका प्रतिदिन वाचन करने के लिए जयाचार्य ने हाजरी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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