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________________ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान ब्रह्मचर्य जैसे जैनधर्म के उपदेश रत्न कथाकोश में मूलतः अध्यात्म, धर्म और नीति से सम्बन्धित कथाओं का संकलन हुआ है । कथाकोश के विस्तृत कलेवर में शायद ही धार्मिक और नैतिक जीवन का कोई पक्ष अछूता रहा हो। इसमें एक ओर जहाँ अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और मूलभूत पाँच महाव्रतों को उजागर करने वाले आख्यान सम्मिलित हैं, वहाँ दूसरी ओर संयम, त्याग, तप, दया, शील, क्षमा, सहिष्णुता, उदारता, विनय, वैराग्य जैसी सद्वृत्तियों के सुपरिणाम दिखलाने वाले अनेक आख्यान सम्मिलित किये गये हैं एवं तीसरी ओर लोभ, माया, मिथ्याचार, छल, छद्म, क्रोध, राग, द्वेष, अहंकार, मिथ्याभिमान, गर्व, कलह, कदाचार, कामान्धता, कुशील, क्रूरता आदि प्रवृत्तियों के अनिष्टकारी परिणामों को प्रदर्शित करने वाली अनेक कथाएं भी संकलित हैं। इसके अतिरिक्त एक ओर गुरु-निष्ठा, धर्म-निष्ठा, व्रत-निष्ठा एवं न्याय के प्रति विश्वास जागृत करने वाली कहानियाँ सम्मिलित की गयी हैं तो दूसरी ओर वाक् संयम, वाक् माधुर्य, नेकनीयती, ईमानदारी आदि सद्गुणों को प्रोत्साहित करने वाली कहानियाँ भी सम्मिलित की गयी हैं । इसी प्रकार सुपात्र दान, रात्रिभोजन- परिहार जैसे विषयों से सम्बन्धित कहानियों के माध्यम से जैन संस्कारों के प्रति आस्था जगाने का प्रयास हुआ है और अमानत में खयानत न करना, किसी के प्रति कृतघ्नता का परिचय न देना जैसी नैतिक मान्यताओं को सम्पुष्ट करने वाली कहानियों के माध्यम से उत्थान की भूमिका तैयार की गयी है। यही नहीं आदर्श राज्य व्यवस्था में राजा और उसके पार्षदों का जनता के प्रति कैसा व्यवहार हो - इस प्रकार के लोक हितकारी विषयों को भी अछूता नहीं छोड़ा गया । इस विषय वैविध्य को देखते हुए अगर इस कथाकोश को आदर्श मानव जीवन का विश्वकोश कह दें तो अतिशयोक्ति न होगी । आदर्शों के प्रति लेखक की प्रतिबद्धता इस सीमा तक है कि उसे धर्म के नाम पर चलने वाले पाखण्ड और वितण्डावाद पर निर्मम प्रहार करने में किंचित् भी संकोच का अनुभव नहीं हुआ है। १४४ यहाँ तक उपदेश रत्नकथा कोश के विषय - विस्तार की एक झलक प्रस्तुत की गयी है । आगे के विवेचन में उसकी प्रवृत्तिगत विशेषताओं पर थोड़ा विस्तार से विचार करते हैं । प्रस्तुत कथाकोश में दो तरह की प्रवृत्तियाँ परिलक्षित होती हैं - एक जैन कथा - साहित्य की प्रवृत्तियाँ और दूसरी सामान्य भारतीय कथा - साहित्य की प्रवृत्तियाँ | जैन कथाओं की यह प्रवृत्ति रही है कि अन्त में उनके मुख्य पात्रों को प्रायः जैन धर्म में दीक्षित होते हुए चित्रित किया जाता है। गृहस्थ जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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