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________________ १२६ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान इस प्रकार और भी अन्य अनेक अभिनिवेशों पर गहरा प्रहार करते हुए आचार्य भिक्षु ने वास्तविक तथ्य प्रगट किए हैं। इस कृति में ४ ढालें २८ दोहे और १६७ गाथाएं हैं। पोतियाबन्ध सम्प्रदाय में दीक्षित स्वयं को मुनि मानते थे। उनकी अवधारणा के अनुसार वर्तमान युग में मनयोग स्थिर नहीं रह सकता। अतः कोई भी त्याग तीन करण, तीन योग से नहीं हो सकता। इस दृष्टि से वे स्वयं को भी श्रावक के रूप में स्वीकार करते थे। साहित्य लेखन भी उनकी दृष्टि में पाप का कार्य था। इसका कारण था - उपकरणों की सीमा । केवल चौदह उपकरण ही साधु के लिए कल्पनीय मानते थे। अधिक उपकरण रखना कल्प से बाहर है, ऐसी उनकी मान्यता थी। १५. अनुकम्पा की चौपाई अध्यात्म के क्षेत्र में अहिंसा, दया और अनुकम्पा का बहुत बड़ा महत्व है। किन्तु इनका यथार्थ अवबोध गहरा अध्ययन, चिन्तन और मनन की अपेक्षा रखता है। आचार्य भिक्षु ने इन तीनों शब्दों की गहरी मीमांसा की है। उन्होंने अपनी नैसर्गिक प्रतिभा से ऐसे तथ्य सुझाए जो प्राचीन ग्रन्थों में भी सुलभ नहीं थे। अहिंसा के बारे में स्वामीजी ने कहा जीव जीवै ते दया नहीं, मरे तो हिंसा मत जाण । मारण वाला नै हिसा कही नहीं मारै ते दया गुणखाण ।। जीव का जीना या मरना दया अथवा हिंसा नहीं है। बल्कि मारना हिंसा है और न मारना दया है । अनुकम्पा पर आचार्य भिक्षु ने स्वतंत्र ग्रन्थ की रचना की। भाषा शास्त्रीय दृष्टि से दार्शनिक चिन्तन प्रस्तुत किया है। अनुकम्पा शब्द की मीमांसा करते हुए कहा गया है ___ गाय भैस आक थोरनो ए चारूं ही दूध । तिण अनुकम्पा जाणज्यो आणी मन में सूध ॥ केवल दूध शब्द अपनी अर्थ यात्रा में गाय, भैंस, आक, थोहर आदि सभी को समाविष्ट कर लेता है, उसी प्रकार अनुकम्पा शब्द भी व्यक्ति को भ्रमित कर सकता है। इसकी सही पहचान के लिए अनुकम्पा को दो भागों में विभक्त किया है-सावद्य और निरवद्य । राग और द्वेष से प्रेरित अनुकम्पा सावध है। इसलिए उसे धर्म नहीं कहा जा सकता। आचार्य भिक्षु ने इस विषय का गम्भीर विवेचन किया है। प्रस्तुत कृति के अध्ययन से ज्ञात होता है कि अहिंसा के क्षेत्र में स्वामीजी बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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