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________________ आधुनिक राजस्थानी कविता को तेरापंथी सन्तों का योगदान २७ अपनी आखिरी सांस तक वे रोतों को हंसाते रहे, टूटतों को जोड़ते रहे और लड़खड़ाने वालों को अपनी बांह का सहारा देकर खड़ा करते रहे । ___ मुनि चम्पक हृदय से कोमल होते हुए भी संयम-साधना में जागरूक और कठोर थे। उनके अनेक दोहों में व्यक्ति की अन्तश्चेतना को जगाकर उसे 'तप तीखी तरवार, करम कटक सू जुध करण' के लिए प्रेरित किया गया है । आर्त को देखकर उनका हृदय मोम की तरह पिघलता था, परन्तु साधना के क्षेत्र में वे वीरभाव से संघर्ष करने के पक्षपाती थे। दुःख में दुर्बलता दिखाने से क्या होगा, रोने से राज थोड़े ही मिलता है ! कर्म भोग समभाव सूं, आली मत कर आंख ! 'चम्पा' बांध्या चीकणा, रोवै क्यूं बण रांक ? अध्यात्म की साधना मन की साधना है, अपनी समस्त चित्तवृत्तियों को बाहर से खींच कर अन्तत: अपने मन में ही केन्द्रित करना होता है । गोरख, कबीर, तुलसी आदि समस्त भक्त कवियों ने साधक को अपने मन के मानसरोवर में ही अवगाहन करने का उपदेश दिया है। 'चम्पक' का यह दोहा भी मनः साधना की प्राथमिकता को रेखाङ्कित करता है __मन गंगा मन गन्दगी, मन रावण मन राम । सरग-नरक पुन-पाप मन, मन उजाड़ मन ग्राम । आत्म-साधना की जानी-पहचानी सच्चाइयों को भी आपने अपने मन के माधुर्य में लपेट कर बड़ी मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया है औरों का ऐश्वर्य-सुख, झांक टांक मत टीक । करणी करता क्यूं तनै, आवै चम्पा झींक । कै ठा कुण सै जलम हा, शेष भोगणा भोग ? 'चम्पा' चुके उधार क्यूं, बिलखो देख वियोग ? दोहा छन्द पर आपका असाधारण अधिकार था और अपने अन्तेवासियों को सम्बोधित कर उन्होंने राजिया और चमरिया की तर्ज में अनेक सम्बोधनात्मक दोहे भी कहे थे । मुनि चम्पक ने केवल कविता ही नहीं लिखी, कविता के स्वरूप और उसकी रचना-प्रक्रिया के सम्बन्ध में अपने नपे-तुले विचार भी प्रस्तुत किए हैं । जब कभी उसके 'मन का मोरिया' नाचता तो वे कविता बनाते नहीं, वह अपने आप बन जाती थी। कविता कोई भाटो थोड़ोई है जको घड़ र बिठा द्यो । कविता बणाई कोनी जावै, बा तो आप ही बणै है। वे कवियशः प्रार्थी नहीं थे, कवियों की अगली पांत में बैठने के अभिलाषी भी नहीं थे, परन्तु यह मानते थे कि आत्मा भव्यक्ति का अधिकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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