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________________ जैन संस्कृति पुरुषार्थवादी संस्कृति जैन संस्कृति विश्व की एक महान संस्कृति है। इस संस्कृति की अपनी कुछ विशेषताएं हैं। इसकी प्रमुख एक विशेषता है कि यह पुरुषार्थप्रधान संस्कृति है । पर इसका यह तात्पर्य नहीं कि यह भाग्य, नियति, काल आदि के अस्तित्व को अस्वीकार करती है। भाग्य आदि तत्त्वों को भी यह स्वीकार करती है, पर सर्वाधिक महत्त्व पुरुषार्थ को ही देती है । प्रकारान्तर से हम ऐसा भी कह सकते हैं कि यह मानव को परमुखापेक्षी न बनाकर उसे स्वमुखापेक्षी बनने की प्रेरणा देती है। अपेक्षित है आत्मालोचन जैन संस्कृति की दूसरी उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यह प्राणिमात्र के लिए उस महाविकास का द्वार खोलती है, जहां तक किसी दूसरे ने शायद सोचने का भी साहस नहीं किया। यहां तक कि यह हर आत्मा को परमात्मा बनने का अधिकार देती है। उस शिखर तक पहुंचने की सम्प्रेरणा देती है, उसका मार्ग-दर्शन करती है। जैनों के लिए यह कितने गौरव की बात है कि उन्हें ऐसी महान् संस्कृति में पलने-पुषने का अवसर मिला है। पर मुझे लगता है, जैन लोग अपनी इस संस्कृति का सही-सही मूल्यांकन नहीं कर पा रहे हैं। उसके संस्कारों को आत्मसात् नहीं कर पा रहे हैं । मैं पूछना चाहता हूं, जैन संस्कृति में विश्वास करनेवाला क्या कभी परावलंबी हो सकता है ? अपने-आपको हीन-दीन समझ सकता है ? यदि उसमें ये बातें हैं तो उसने जैन-संस्कृति का आलोक कहां पाया ? अपेक्षा है, जैन लोग अपना आत्म-निरीक्षण करें जिन संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में अपने संस्कार, व्यवहार एवं आचरण की तटस्थ समीक्षा करें। ऐसा करने से उनके सामने सारी स्थिति स्वयं स्पष्ट हो जाएगी। यह स्पष्टता उन्हें स्वयं को जैन संस्कृति के अनुरूप ढ़लने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी। मैं नहीं समझता, जब तक जैन लोगों का स्वयं का जीवन, जीवन का व्यवहार जैन संस्कृति के अनुकूल नहीं होगा, दूसरे-दूसरे लोगों के मन में उसके प्रति आकर्षण का भाव कैसे जागेगा? मैं जैन संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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