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________________ सामने एक ही लक्ष्य रहता है-अपने लिए सुख-सुविधाएं बटोरना, सुखसुविधाओं के साधन जुटाना । मेरी दृष्टि में यह बिल्कुल जघन्य और हीन वृत्ति है। इसके परिणामस्वरूप आज चारों ओर आपसी संघर्ष, कलह, वैमनस्य और हिंसा का बोलबाला हो रहा है । जगत् का वातावरण धुंधला और निराशापूर्ण बनता जा रहा है । यदि इस निराशा के अंधियारे को मिटाना है तो व्यक्ति-व्यक्ति को यह दृढ़ संकल्प करना होगा कि वह अपने सुख के लिए दूसरे को दुःख देने पर उतारू नहीं होगा । मेरे मन में कई बार विचार आता है कि व्यक्ति यह क्यों नहीं देखता कि प्रतिकूल आचरण से जिस प्रकार उसे दुःख होता है, क्या दूसरों को भी वैसा नहीं होता? अणुव्रत सार्वभौम और मानव धर्म है सुख और आनन्द के संदर्भ में एक बात समझ लेने की है । भौतिक पदार्थ एवं सुविधाजन्य सुख और आनन्द क्षणिक है । स्वल्पकालिक तृप्ति के साथ ही अतृप्ति शुरू हो जाती है और वह क्रमश: बढ़ती जाती है। यह सच्चा सुख नहीं है । सच्चा सुख तो संयम और आत्म-नियन्त्रण में है। इस सुख के समक्ष भौतिक सुख सर्वथा नगण्य है । संयम और आत्म-नियन्त्रण से प्राप्त सुख को उपलब्ध हो जाने के पश्चात् व्यक्ति की भौतिक सुख-प्राप्ति के प्रति आकांक्षा सिमटने लगती है। अणवत आंदोलन व्यक्ति-व्यक्ति को संयममय जीवन जीने के लिए उत्प्रेरित करता है, आत्म-नियन्त्रण के पथ पर पदन्यास करने का आह्वान करता है। इसकी बड़ी विशेषता यह है कि यह किसी वर्ग विशेष का नहीं, किसी सम्प्रदायविशेष का नहीं, किसी कोमविशेष का नहीं। यह तो समस्त मानव-जाति का है। दूसरे शब्दों में यह सार्वभौम और मानव धर्म है। आज के वैषम्यपूर्ण और अशांत वातावरण में यह समता और शांति का सन्देश देनेवाला उपक्रम है। आपसे अपेक्षा है, आप इसकी आचारसंहिता को संकल्प के स्तर पर स्वीकार करें। निश्चित ही आपके जीवन में वास्तविक सुख और आनन्द का स्रोत फूटेगा। महुआ १६ मार्च १९५८ ऊंचा जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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