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________________ मनोवैज्ञानिक हैं। पर कुछेक कारणों से इसका प्रचार-प्रसार बहुत कम हुआ है। इस कारण लोग इसके बारे में तथ्यपरक जानकारी बहुत कम रखते हैं । मैं इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेवार स्वयं जैन लोगों को ही मानता हूं। उन्होंने इस बिंदु पर गंभीरता से चितन और योजनाबद्ध ढंग से कार्य किया ही नहीं । और करें भी तो कैसे ? उन्होंने अपने दिमाग को संकीर्ण साम्प्रदायिकता से जकड़ रखा है । मैं जब से जयपुर आया हूं, इस शहर की बसावट से अत्यंत प्रभावित हूं । विशेषतः यहां की लम्बी-चौड़ी विशाल सड़कों ने मुझे प्रभावित किया है। इन सड़कों को देखकर कई बार मन में चिंतन आता है, क्या ही अच्छा होता कि लोग अपने दिल और दिमाग को इन सड़कों की तरह विशाल बनाते । अब भी समय है कि जैन लोग इस बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित कर अपनी संकीर्ण साम्प्रदायिकता से मुक्त बनें। इसके लिए उन्हें पंचसूत्रीय कार्यक्रम अपनाना होगा। पांच सूत्र ये हैं ---- १ मंडनात्मक नीति बरती जाए । अपनी मान्यता का प्रतिपादन किया जाए। दूसरों पर लिखित या मौखिक आक्षेप न किया जाए। २. दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुता रखी जाए । ३. दूसरे सम्प्रदायों और उनके अनुयायियों के प्रति घृणा तथा तिरस्कार की भावना का प्रचार न किया जाए। ४. कोई सम्प्रदाय-परिवर्तन करे तो उसके साथ सामाजिक बहिष्कार आदि अवांछनीय व्यवहार न किया जाए। ५. धर्म के मौलिक तत्व --- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को जीवनव्यापी बनाने का सामूहिक प्रयत्न किया जाए। मैं मानता हूं, यदि इन पांच सूत्रों को हृदय से अपनाया जाता है तो संकीर्ण सांप्रदायिकता की भावना समाप्त होकर जैन एकता का सुंदर वातावरण निर्मित हो सकेगा। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि जैनों की आवाज में एक बल आ जाएगा। महावीर के सिद्धांतों का वे प्रभावी ढंग से प्रचार-प्रसार कर सकेंगे । जैन शासन की यह बहुत महत्त्वपूर्ण सेवा होगी। जयपुर १ मार्च १९५८ जैन दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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