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________________ हताश होने की जरूरत नहीं है । जरूरत यह है कि वह जागरूक एवं उद्बुद्ध बनकर आगे बढ़े । ख्याल रहे यह वह राजपथ है, जिस पर चलने वाला निर्बाध रूप में अपनी मंजिल तक पहुंचता है | जीवन सच्चरित्र एवं संयम से भावित हो कार्यकत्रियां यह भी समझें कि वे जन-सेविकाएं बनकर जनता पर कोई अहसान नहीं करतीं । निश्चय में तो इस बहाने वे अपनी ही सेवा करती हैं। आप देखें, सच्चा जन सेवक वही होता है, जो सच्चरित्र हो, जिसकी वृत्तियां संयमित हों । मैं पूछना चाहता हूं, क्या सच्चरित्र एवं संयममय जीवन जीना अपनी सेवा नहीं है ? यदि कार्यकत्रियों के समक्ष यह तथ्य स्पष्ट होगा तो उनके मन में अभिमान आने की संभावना स्वयं क्षीण हो जाएगी । जरूरी है ज्ञान और क्रिया का योग प्रशिक्षु कार्यकत्रियों का ध्यान मैं एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु पर केन्द्रित करना चाहता हूं | ज्ञान की जीवन में असंदिग्ध रूप से उपयोगिता है, उपादेयता है । पर उसके साथ चरित्र का योग भी आवश्यक है । चरित्रशून्य ज्ञान तो बैल पर लदी पुस्तकों के समान है, जिनका कि उसके लिए भार ढोने से अधिक और कोई उपयोग नहीं होता । इसलिए प्रत्येक प्रशिक्षु कार्यकर्त्री अपने मन में यह संकल्प संजोए कि वह सद्ज्ञान के अनुरूप ही अपने आचरण को बनाएगी । सच्ची सेवा आज राष्ट्र में नैतिक एवं मानवीय मूल्यों का ह्रास बड़ी तेज गति से हो रहा है । यदि समय रहते इस ह्रास को नहीं रोका गया तो राष्ट्र के सामने एक भयंकर विषम स्थिति पैदा हो जाएगी । राष्ट्र को वह स्थिति न देखनी पड़े, इसके लिए जन-जन की नैतिक एवं मानवीय चेतना को जागृत करना आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक काम है। शिविरार्थी कार्यकत्रियां यदि इस काम को अपने हाथ में लेती हैं, तो यह जनवादी राष्ट्र की सबसे बड़ी सेवा होगी । अणुव्रत आंदोलन नैतिक एवं मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा के उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया एक व्यापक अभियान है । इस अभियान के माध्यम से वे इस कार्य को बहुत व्यवस्थित रूप में सम्पादित कर सकती हैं । वे जन-जन को इस अभियान के साथ जोड़ने का कार्य करें, उससे पूर्व यह अपेक्षित है कि वे स्वयं इस अभियान के साथ सक्रिय रूप में जुड़ें | ख्याल रहे, स्वयं जलकर ही दीपक दूसरों को प्रकाश बांट सकता है । सीतापुर ५ जून १९५८ ८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only महके अब मानव-मन www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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