SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ९५ ) हमारे पाठकोंको सावधान करते हैं कि - याद रहे कि इस गप्पीदास के गप्पगोलेमें विश्वास नहीं रखना चाहिये। क्योंकि महान् धर्मधुरंधर पूर्वाचार्यों के रचे हुए साहित्यग्रन्थका कोई अंश आगमविरुद्ध नहीं है । मात्र ' विनाशकाले विपरीतबुद्धिः ' इस कहावत के अनुसार बेचरदासकी बुद्धिमेही विपर्यय हो गया है । बेचरदास - " कमनशीबे हालमां साधुओ एम कहे छे के आ आगमो श्रावको वांची शके नहीं । याद राखो के आ आगमो हाल मां श्रावको सांभली शके छे अने ते सामे साधुओंनो बांधो नथी बल्कि साधुओ पोतेज संभलावे छे " इत्यादि. समालोचक--बेचरदास ! अधिकार वगैर श्रावक लोग अगर आगमशास्त्र पढ़े तो उनको लाभके बजाय बड़ी भारी हानि पहुंचती है । उदाहरण में तुमही हो, क्योंकि सूत्र स्वयं बांचनेसे तुह्मारी बुद्धिका नाश हुवा प्रत्यक्ष नजर आता है, अन्यथा वज्रस्वामी आर्यरक्षित जैसे महात्माओं को भी तुम अंधेरा तेरनेवाले कदापि नहीं कहते । अत्र बिचार करोकि जो सूत्रपठन मोक्ष देनेवाला है वही अधिकार वगैर तुमको नरकादि अधोगतिका देनेवाला हो गया । बस यही कारण है कि श्रावकको सूत्रपढ़नेकी मनाई साधुओंकी तरफसे नहीं किन्तु परमात्मा की तरफते है । · तटस्थ -- आपने यह क्या सुनाया ! क्या ऐसा बन सकता है कि जो जैनसूत्रका पठन मोक्षदेनेवाला है वही अधिकार वगैर पढ़नेवालेको नरकादि देनेवाला बन जाय ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy