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________________ हुए श्रीपालमहाराजके उद्यापनका सुनाया । और साबित किया कि उस वक्त भी देवद्रव्य था । क्या इससेभी प्राचीन कोई प्रमाण आपके पास है कि मुनिसुव्रतस्वामीसे जिससे पहिले भी देव. द्रव्य सिद्ध हो। समालोचक-हां, पंद्रहवें तीर्थङ्करश्रीधर्मनाथस्वामीके वक्त में भी देवद्रव्य था। जैसे श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराज. अपने बनाए त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमें चौथे पर्वके पांचवें सर्गमें लिखते हैं. " पतिप्रसादादुद्भूता, ये प्राज्या रत्नराशयः । अनन्तं काञ्चनं यच्च, ये वा रजतसञ्चयाः ॥ ११४ ॥ मुक्तामया वज्रमया, जात्यरत्नमयाश्च ये। संमिश्रा ये च नेपथ्यसमुदायाः सहस्रशः ॥११५॥ यच्चान्यत्कोशसर्वस्वं, सप्तक्षेत्र्यां तदर्ग्यताम् । महापथपस्थितानां, पायेयं हीदमादिमम् ॥ ११६ ॥" भावार्थ-पुरुषसिंहवासुदेवके पिता जब असाध्य रोगसे पीडितहुए तब उसकी माताने ' मैं विधवा न कहलाउं' इस खया: लसे चितामें जलनेकी तय्यारीकी, तब लड़का माके पास मिलनेको गया। उस वक्त माता कहतीहैकि हे पुत्र ! पतिकी कृपासे उपार्जित की हुई जो बड़ी रत्नोंकी राशी है और बहुत काञ्चन है और चांदीका समूह है तथा मोती हीरे रत्नमय जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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