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________________ (१२) तो एक तो वह हठी था और दूसरे रुपयोंके देनेका भी भय होनेसे विनाशर्मका झट बोल उठा कि यह पाठ तो आग्रहजन्य है, फिर उसी ग्रंथके अंदर अन्य जगह पर उसी विषय का पाठ चौथी बार बताया तो वह कहने लगा कि यह तो आलङ्कारिक है । इसके बाद उस सत्यप्ररूपक ग्रंथके अभ्यासी पुरुषने फिर भी अन्यान्य पाठ उसी विषयके उसी शास्त्रभे बताए तब वह दुराग्रही कहीं अनुकरणजन्य, कहीं रूढिजन्य है ऐसे कहकर दोसौ रुपये न देने पड़े ऐसे विचारसे अपनी हठको नहीं छोड़ी। इस दुराग्रहीके दुराग्रहको अच्छी तरह समझकर वहां पर जो सत्ताधिकारी न्यायी पुरुष उपस्थित थे उन्होंने उस मृषावादी अन्यायीका मुंह काला करके गधे पर चढ़ाकर नगरके बाहर निकाल दिया । यदि अबभी कोई ऐसा न्यायी सत्ताधिकारी धर्मात्मा मौजूद हो तो यह बात हम निः सन्देह कह सकते हैं कि आगमशास्त्रमें भी “ आग्रह जन्य आलकारिक वाक्य हैं ” इत्यादि वाक्जालको रचनेवाले आधुनिक कदाग्रहियोंकी भी अवश्य उस असत्यवादी जैसी दशा करे । हम पाठकवर्गको सावधान करते हैं कि याद रखिएगा कि कोई नास्तिकशिरोमणि आगमके विषयमें यदि कहे कि, “ अमुकभाग रूढिजन्य है या अमुकभाग आग्रहजन्य है या अमुकभाग नैमित्तिक है इत्यादि ' तो उस पुरुषको असत्यवादी और बकवादी समझना चाहिए क्यों कि अपने आगमशास्त्र आजतक तत्त्व के विषयमें ज्यों के त्यों अविच्छिन्नपणे चले आते हैं । हां, कितनाक भाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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