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________________ (१२० ) अने अमुक चीज नाज थई शके एई एकदेशीय फरमान आगमोमां कोई ठेकाणे नथी ". परन्तु यह नहीं विचार कियाकिगुरुगम विना मेरेको आगमका भावही मालूम नहीं हुवा, क्योंकि ऐसा कदापि नहीं बन सकताकि सब बातोंमें एकदेशीय फरमान नहीं है ऐसा कहकर काम चलालें । सब विषयोंमें इस वाक्यको पेश करना मूर्खताकाही लक्षण है। अगर एकदेशीय फरमान नहीं है, तो क्या जो जैनवर्ग वीतराग प्रभुके चरणोंका सेवन कर रहा है, उसे सरागी ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देवोंके चरणोंका सेवनभी करना योग्य है ? क्या महाव्रतधारी गुरुओंको माननेवाले जैनोंको भांग धतूरे खानेवाले परिग्रहधारी, व्यभिचारकर्ममें अहानेश मग्न रहनेवाले सम्यक्त्व रहिन कुगुरुओंकोभी मानना चाहिये ? क्या दयामयधर्मको छोड़कर पशुवधविधायक हिंसाधर्मकोभी मानना चाहिये ? रमणीविरनसाधुजनोंको क्या रमणीसङ्गमें प्रवृत्त होना चाहिये ? साधुओंको निर्दोष वृतिकी भिक्षाको त्यागकर चुल्हा जलाकर भोजन करना चाहिये ? क्या उष्णोदकके पान करनेवाले साधुओंको कच्चे जलका पानभी करना चाहिये ? क्या वनस्पतिके अनासेवी मुनियोंको फलफूलका उपभोगभी करना चाहिये ? क्या मांस मदिराके त्यागी और स्वदारासंतोषी गृहस्थको मांसभक्षण, मदिरापान, परस्त्रीगमन और वेश्यागमनभी करना चाहिये ? नहीं नहीं धीरपुरुष प्राण चले जाने परभी ऐसे नीच कोंको कदापि नहीं करते । और शास्त्रकाभी ऐसाही उपदेश हैकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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