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________________ ८ अहिंसा तत्त्व दर्शन अहिंसा का मध्यम-मार्ग है। गृहस्थ के लिए उपयोगी है। इसमें न तो गृहस्थ के औचित्य-संरक्षण में भी बाधा आती है और न व्यर्थ हिंसा करने की वृत्ति भी बढ़ती है । यदि हिंसा का बिलकुल त्याग न करे तो मनुष्य राक्षस बन जाता है और यदि वह हिंसा को सर्वथा त्याग दे तो गृहस्थपन नहीं चल सकता। इस स्थिति में यह मध्यम-मार्ग श्रावक के लिए अधिक श्रेयस्कर है। इसका अर्थ यह नहीं कि गृहस्थ इस हद के उपरान्त हिंसा का त्याग कर ही नहीं सकता। यदि किसी गृहस्थ में अधिक साहस हो, अधिक मनोबल हो तो वह सपराध और निरपराध दोनों की हिंसा का त्याग कर सकता है। पर सर्वसाधारण में कहां इतना मनोबल, कहां इतना धैर्य और साहस कि वह अपराधी को भी क्षमा कर सके? हिंसक बल के सामने अपने भौतिक अधिकारों की रक्षा कर सके ? नीति-भ्रष्ट लोगों से अपने स्वत्व को बचा सके ? अहिंसा का प्रयोग प्रधानतः आत्मा की शुद्धि के लिए है। राज्य आदि कार्यों में हिंसा से जितना बचाव हो सके, उतना बचाव करे, यह राजनीति में अहिंसा का प्रयोग है। किन्तु जो बल आदि का व्यवहार होता है, वह हिंसा ही है। सामाजिक और धार्मिक प्रवृत्ति का पृथक्करण क्यों ? अमुक कार्य समाज या संसार का है और अमुक कार्य धर्म या मोक्ष का है, ऐसा विभाग क्यों ? समाज और धर्म सर्वथा अलग नहीं हो सकते। इसलिए इन्हें अलग-अलग बांटने से बड़ी उलझन पैदा होती है-एक विचारधारा ऐसी भी है। इस उलझन को मिटाने का एकमात्र उपाय नास्तिकवाद है। अनात्मवादी जीवन की वर्तमान कठिनाइयों से सबसे अधिक बच सकता है। उसे वर्तमान की उपयोगिता से आगे सोचने की जरूरत नहीं होती। आत्मवादी वर्तमान उपयोगिता को ही जीवन का साध्य नहीं मानता, इसलिए वह आत्म-शुद्धि को जीवन का चरमसाध्य मानकर चलता है । उसका साधन है-अहिंसा। ___ जीवन हिंसा के बिना चलता नहीं, गृहस्थ को आवश्यक सुविधाएं जो जुटानी पड़ती हैं । इसलिए वह अनावश्यक हिंसा से बचकर चलता है। यही समाज अहिंसा या आध्यात्मिकता की नींव पर सृष्ट समाज कहलाता है। अहिंसक समाज का यह अर्थ नहीं कि वह कुछ भी हिंसा नहीं करता किन्तु वह हिंसा को यथाशक्य छोड़ने का ध्येय रखकर चलता है। उसमें जितना वीतराग-भाव या माध्यस्थ्य है, वह अहिंसा है और जितना राग-द्वेष, मोह, अज्ञान है, वह हिंसा है। सामाजिक प्राणी अहिंसा का ध्येय रखते हुए भी दैहिक अनिवार्यता और राग-द्वेष की पराधीनता के कारण हिंसा से छुटकारा नहीं पाता, इसलिए वह अहिंसा और हिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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