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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन २६ सजीव स्थूल होते हैं, इसलिए उनकी हिंसा स्पष्ट जान पड़ती है । स्थावर जीव सूक्ष्म होते हैं, इसलिए उनकी हिंसा सहजतया बुद्धिगम्य नहीं है । स्थावर जीवों की अवगाहना का एक प्रसंग देखिए गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से पूछा - भगवन् ! पृथ्वीकाय की अवगाना कितनी है ? भगवान् ने कहा—गौतम ! चक्रवर्ती राजा की दासी, जो युवा, बलवती व नीरोग है तथा कला-कौशल में निपुण है, ऐसी दासी वज्र की कठिन शिला पर वज्र के लोढे से छोटी गेंद जितने पृथ्वी के पिण्ड को एकत्रित कर पीसे, बार-बार पीसने पर भी कितने पृथ्वीकाय के जीवों को केवल सिला- लोढे का स्पर्श मात्र होता है, कितनों को स्पर्श तक नहीं होता, कुछ जीवों के संघर्ष होता है और कुछ जीवों को नहीं, कुछ एक पीड़ा का अनुभव करते हैं, कितने मरते हैं और कितने मरते तक नहीं, कितने पिसे जाते हैं और कितने नहीं । स्थावर जीवों को छूने मात्र से कष्ट होता है की मर्यादा नहीं समझी जा सकती । १. भगवती १६।३ Jain Education International पिसे जाते । ' शस्त्र - विवेक के बिना अहिंसा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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