SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन भी प्राणी को मारना, कष्ट देना, बलात् आज्ञा मनवाना उचित नहीं।' अहिंसा आत्म-संयम का मार्ग इस प्रकार आत्मार्थी आत्मा का कल्याण करने वाला. आत्मा की रक्षा करने वाला, आत्मा की शुभ प्रवृत्ति करने वाला, संयम के आचरण में पराक्रम प्रकट करने वाला, आत्मा को संसाराग्नि से बचाने वाला, आत्मा पर दया करने वाला, आत्मा का उद्धार करने वाला साधु अपनी आत्मा को सब पापों से निवृत्त करे। अहिंसा : अपनी-अपनी दष्टि में ___अहिंसा की परिभाषाएं विभिन्न विचारकों द्वारा विभिन्न भाषाओं में की गई हैं, तब भी उनका तत्त्व एक है। भगवान महावीर ने कहा है : ___ 'अहिंसा निउणं दिट्ठा सव्वभूएसु संजमो।' -प्राणी मात्र के प्रति जो संयम है, वही (पूर्ण) अहिंसा है। सुत्तनिपात धम्मिक सुत्त में महात्मा बुद्ध ने कहा है पाणे न हाने न च घातयेय न चानुमन्या हनतं परेसं । सव्वेसु भूतेसु निधाय दंडं, ये थावरा ये च तसंति लोके ।। -बस या स्थावर जीवों को न मारे, न मरावे और न मारने वाले का अनुमोदन करे। आयुर्वेद में कहा है : _ 'विश्वस्याहं मित्रस्य चक्षुषा पश्यामि' -मैं समूचे संसार को मित्र की दृष्टि से देखू । 'तत्र अहिंसा सर्वदा सर्वभूतेष्वनभिद्रोहः' -पातंजल योग के भाष्यकार ने बताया है कि सर्व प्रकार से, सर्वकाल में, सर्व प्राणियों के साथ अभिद्रोह न करना, उसका नाम अहिंसा है। 'गीता' में अहिंसा की व्याख्या करते हुए लिखा है : समं पश्यन् हि सर्वत्र, समवस्थितमीश्वरम् । न हिंस्त्यात्मनात्मानं, ततो याति परां गतिम् ।। -ज्ञानी पुरुष ईश्वर को सर्वत्र समान रूप से व्यापक हुआ देखकर-भरा १. सूत्रकृतांग २।१११५ २. वही, २।२।४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy